वो ढलते सूरज की सिंदूरी शाम..
वो अपनी हाथेलियों में...
लिखती-मिटाती मैं तुम्हारा नाम....
वो असमान को घेरते...
तारो की राते...
वो घंटो निहारते..
चाँद की बाते.....
मुझे देखती.....
तुम्हारी आखों के सवाल..
मेरी झुकती पलकों के जवाब.....
वो तुम्हारे कांधे पर सर रख कर,
गुजरती ना जाने कितनी...
खुबसूरत राते...
वो चाँद का पीछा करती....
हमारी आँखे.....
लो मैंने......
आज फिर चाँद से तुम्हारे लिए...
एक सन्देश भिजवाया है,
तुम भी नज़र भर कर देख लेना...
मैंने अभी-अभी....
चाँद में तुम्हे ही पाया है.....!!!
वो अपनी हाथेलियों में...
लिखती-मिटाती मैं तुम्हारा नाम....
वो असमान को घेरते...
तारो की राते...
वो घंटो निहारते..
चाँद की बाते.....
मुझे देखती.....
तुम्हारी आखों के सवाल..
मेरी झुकती पलकों के जवाब.....
वो तुम्हारे कांधे पर सर रख कर,
गुजरती ना जाने कितनी...
खुबसूरत राते...
वो चाँद का पीछा करती....
हमारी आँखे.....
लो मैंने......
आज फिर चाँद से तुम्हारे लिए...
एक सन्देश भिजवाया है,
तुम भी नज़र भर कर देख लेना...
मैंने अभी-अभी....
चाँद में तुम्हे ही पाया है.....!!!
वाह ! अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteवो घंटो निहारते..
ReplyDeleteचाँद की बाते.....
मुझे देखती.....
सुन्दर रचना .. एहसास का बखूबी चित्रण