Sunday 30 August 2015

तुम ही तुम....!!!

चाँद भी तुम...
सूरज भी तुम..
आसमां भी तुम..
जमी भी तुम...
लबो की ख़ुशी भी तुम..
आखों की नमी भी तुम..
अन्धकार भी तुम..
रौशनी भी तुम...
मेरा तो सारा संसार हो तुम...
शिव भी तुम...
शक्ति भी तुम...
अर्चना भी तुम..
उपवास भी तुम...
जीत भी तुम...
हार भी तुम...
मेरे जीवन का आधार हो तुम...
मोह भी तुम..
सन्यास भी तुम...
सागर भी तुम...
प्यास भी तुम...
मेरे जीवन का...
वर्तमान भी तुम....इतिहास भी तुम...!!!

Sunday 23 August 2015

मैं श्रृंगार करुँगी.....!!!

फिर आज...
मैं श्रृंगार करुँगी...
जब तक...
तुम से जी भर कर,
तारीफे नही सुन लुंगी...
तब तक ना...
तुमसे प्यार करुँगी...
फिर आज...
मैं श्रृंगार करुँगी...
माथे पर तुम्हारे होटों की,
निशानी रखूंगी...
आँखों में तुम्हारी नजरो की,
कहानी भर लुंगी...
लबों पर तुम्हारे नाम की,
मुस्कान रखूंगी
हथेलियों पर...
तुम्हारी हथेलियों की,
छुअन की महंदी रचुंगी..
मैं तो आज सिर्फ...
तुम्हारे लिए सजुंगी...
जब तक..
तुम से जी भर कर,
तारीफे नही सुन लुंगी...
तब तक ना...
तुमसे प्यार करुँगी...
फिर आज...
मैं श्रृंगार करुँगी...
मैं ना...
बिंदिया..चुड़ी..पयाल..
बिछुआ..हार...पहंनुगी..
मैं तो सिर्फ..
तुम्हारे रंग में रंगुगी..
जब तक...
तुम से जी भर कर,
तारीफे नही सुन लुंगी...
तब तक ना...
तुमसे प्यार करुँगी...
फिर आज...
मैं श्रृंगार करुँगी...!!!

Saturday 22 August 2015

मेरा कुछ भी लिखना....!!!

मेरा कुछ भी लिखना...
दो पल तुमसे बाते...
करना होता है...
शब्दों में तुम्हे उतार कर,
पन्नो पर सजाना..
तुम्हे अपनी उँगलियों से..
छूना होता है...
मेरा कुछ भी लिखना...
तुमसे प्यार का इजहार..
करना होता है...
अपने शब्दों से तुम्हे पुकारना...
तुम्हे याद करना होता है....
मेरा कुछ भी लिखना...
तुम्हारे लिये...
दुआ करना होता है..
कविताओं में...
तुम्हारा जिक्र करना...
तुम्हारी इबादत करना होता है...
मेरा कुछ भी लिखना..
तुम्हे लिखना होता है..
शब्द तब शब्द कहाँ रहते...
मेरे शब्दों में सिर्फ,
नाम तुम्हारा होता है....

Friday 14 August 2015

वो दो लम्हे...!!!

वो दो लम्हे...
जो तुम्हारे साथ गुजरे...
दो सदियों के जैसे थे...
या कहूँ कि..
दो जन्मों की हो बात..
उन दो लम्हों में..
सब कुछ तो पा लिया मैंने,
उन दो लम्हों में..
बेइन्तहा प्यार...
तुम्हारी आखों में...
खुबसूरत शरारत तुम्हारी बातो में...
इक उम्मीद थी...
उन दो लम्हों में..
रातो के ख्वाब थे..
उन दो लम्हों में...
पहली बारिश में...
भीगी मिट्टी सी खुसबू थी,
उन दो लम्हों में...
खुदा की गयी...इबादत थी,
उन दो लम्हों में...
दो पन्नो में क्या लिखूं,
उन दो लम्हों को...
कि जिन्दगी की किताब थी...
उन दो लम्हों में....
उन दो लम्हों की,
जो करने बैठ गयी जो बात...
तो कम पड़ जायंगे..
इक दिन...इक रात...
इक जिन्दगी भी जो करुँगी,
बात तो खत्म ना होगी..
उन लम्हों की बात...
वो दो लम्हे...
जो मेरी जिन्दगी में,
सांसो की तरह है..
वो लम्हे जो मेरी आखों में,
ख्वाबो की तरह है...
वो दो लम्हे...
जो गुजरे थे जो तुम्हारे साथ,
मेरे हर सवाल के थे..
वो जवाब..
वो दो लम्हे....
जो मुकम्मल करते है...
मेरा ख्वाब...!!!

Monday 10 August 2015

नही सुलझा पायी....!!!

नही सुलझा पायी,
उन उलझनों को जिसमे..
तुम उलझा कर गये थे...
बंध सी गयी उन उलझनों में,
नही खोल पायी,
कोई गिरह...
ना ही मिला मुझे कोई सिरा...
उलझ कर गयी हूँ...
तुम्हारी बातो में,अहसासों में,
तुम्हारे वादों में...
नही समझ पा रही हूँ,कि
झूठ क्या था,तुम्हारा प्यार...
या तुम्हारी बाते या तुम्हारे वादे...
क्या सिर्फ छलावा था,
जो तुम्हारी आखो में देखा था,
या सिर्फ मेरा भ्रम था,
जो मेरे दिल ने..
महसूस किया था....
ग़र मान लूँ की...
सब झूठ था..भ्रम था...
तो भी तुम्हारी तरह,
मैं भी झूठी थी...
जो तुम्हारी झूठी आँखों को,
ना पढ़ सकी...
उलझन में हूँ...
कि ग़र गलत तुम्हे कहूँ...
तो गलत मैं भी हूँ..
कि गलत को चुना है मैंने....!!!

Sunday 9 August 2015

वो खामोश सी शाम...!!!

मुझे आज भी याद है,
वो खामोश सी शाम...
ना जाने कितने ही..
अफ़साने छिपाये गुजरती,
जा रही थी..
वो खामोश सी शाम....
जब हम मिले थे..
इस तरह हम ख़ामोश,
इक दूजे के साथ बैठे थे,
कि जैसे कोई बात ही ना हो...
हमारे अन्दर एक तूफान,
चल रहा था...
पर ख़ामोशी ने,
हमारे होठ सिल दिए थे....
इक ऐसी ख़ामोशी,
जिसके शोर में..
हम दोनों ख़ामोश हो गये थे..
फिर अचानक कुछ हुआ..
कोई हलचल सी हुई..
यूँ लगा कि...
जैसे साँसे चलने लगी हो..
जब तुम्हारी उँगलियां,
मेरी हथेलियों में...
कुछ ढूंड सी रही थी,
शायद उन लकीरों को,
जिसने हमे मिलाया था..
या फिर...
कुछ लिखना चाहती थी,
तुम्हारी उँगलियाँ...
मेरी हथेलियों पर....
मुझे नही पता कि,
जो तुम ढूंड रहे थे,
वो मिला की नही,
या जो तुम लिखना चाहते थे,
वो लिखा की नही...
पर हाँ मैं आज भी...
देर तक देखती हूँ....कि शायद
मैं वो पढ़ सकूँ जो,
तुम उस दिन मेरी हथेलियों,
पर लिख कर गये थे...
मुझे कुछ नही मिला,
सिवा ख़ामोशी के,
जो हर सवाल के जवाब में...
तुम छोड़ गये थे...!!!

Wednesday 5 August 2015

तुम्हारी राधा...बनना चाहती हूँ मैं....

मुझे उच्चाइयां आसमानों,
की मिले न मिले..
तुम्हारी आखो में...
उतरना चाहती हूँ मैं..
मुझे बहारे मिले ना मिले,
बन के खुशबू...
तुम्हारी सांसो से...
गुजरना चाहती हूँ मैं...
मेरा जिक्र तुम्हारी बातो में..
हो ना हो...
तुम्हारी यादो में,
रहना चाहती हूँ मैं....
मैं तुम्हारे  साथ....
चलूँ ना चलूँ,
तुम्हारे कदमों के निशां पर,
चलना चाहती हूँ मैं....
तुम मुझे इक नजर,
देखो ना देखा,
अपने हर नज़ारे में,
तुम्हे देखना चाहती हूँ मैं....
तुम मेरे कान्हा...
बनो ना बनो..
तुम्हारी राधा...
बनना चाहती हूँ मैं....!!!

Sunday 2 August 2015

सुकून की तलाश थी...!!!

हम दोनों एक साथ थे..
साथ रहते थे,
हर पल इक साथ ही तो थे...
फिर भी ना जाने क्यों..
मुझे सुकून की तलाश थी...
वो सुकून..
जो तुम्हारी आखों में,
देर तक देखने में मिलता था...
वो सुकून...
जो तुम्हारे हाथों को,
थाम कर चलने में था...
वो सुकून...
जो किसी सफ़र पर,
तुम्हारे काँधे पर सर,
रख कर सोने में था...
वो सुकून...
जो अपनी हथेलियों पर,
तुम्हारे चहेरे को रख कर,
सोने में था...
वो सुकून...
जो बेवजह तुम्हारा,
मेरे माथे को चूमने में था...
ना जाने कहाँ खो गया...
वो सुकून....
जो हमारे साथ होने में था...
हर पल हम साथ तो थे..
लम्हों का सुकून नही था...
मैं जीना चाहती हूँ,
वो सुकून....
यूँ ही बेवजह...
किसी सफ़र पर,
चलना चाहती हूँ दूर तक..
मंजिल मुझे मिले ना मिले,
तुम्हारे साथ सफ़र पर हूँ..
ये सुकून तो रहेगा....!!!