मुझे उच्चाइयां आसमानों,
की मिले न मिले..
तुम्हारी आखो में...
उतरना चाहती हूँ मैं..
मुझे बहारे मिले ना मिले,
बन के खुशबू...
तुम्हारी सांसो से...
गुजरना चाहती हूँ मैं...
मेरा जिक्र तुम्हारी बातो में..
हो ना हो...
तुम्हारी यादो में,
रहना चाहती हूँ मैं....
मैं तुम्हारे साथ....
चलूँ ना चलूँ,
तुम्हारे कदमों के निशां पर,
चलना चाहती हूँ मैं....
तुम मुझे इक नजर,
देखो ना देखा,
अपने हर नज़ारे में,
तुम्हे देखना चाहती हूँ मैं....
तुम मेरे कान्हा...
बनो ना बनो..
तुम्हारी राधा...
बनना चाहती हूँ मैं....!!!
की मिले न मिले..
तुम्हारी आखो में...
उतरना चाहती हूँ मैं..
मुझे बहारे मिले ना मिले,
बन के खुशबू...
तुम्हारी सांसो से...
गुजरना चाहती हूँ मैं...
मेरा जिक्र तुम्हारी बातो में..
हो ना हो...
तुम्हारी यादो में,
रहना चाहती हूँ मैं....
मैं तुम्हारे साथ....
चलूँ ना चलूँ,
तुम्हारे कदमों के निशां पर,
चलना चाहती हूँ मैं....
तुम मुझे इक नजर,
देखो ना देखा,
अपने हर नज़ारे में,
तुम्हे देखना चाहती हूँ मैं....
तुम मेरे कान्हा...
बनो ना बनो..
तुम्हारी राधा...
बनना चाहती हूँ मैं....!!!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6-8-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2059 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
sundar prastuti..kabhi mere blog pe aake padho or follow to karo.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.08.2015) को "बेटी है समाज की धरोहर"(चर्चा अंक-2060) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteखूबसूरत रचना ....मन के भावों को कहती हुई ...
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