नही सुलझा पायी,
उन उलझनों को जिसमे..
तुम उलझा कर गये थे...
बंध सी गयी उन उलझनों में,
नही खोल पायी,
कोई गिरह...
ना ही मिला मुझे कोई सिरा...
उलझ कर गयी हूँ...
तुम्हारी बातो में,अहसासों में,
तुम्हारे वादों में...
नही समझ पा रही हूँ,कि
झूठ क्या था,तुम्हारा प्यार...
या तुम्हारी बाते या तुम्हारे वादे...
क्या सिर्फ छलावा था,
जो तुम्हारी आखो में देखा था,
या सिर्फ मेरा भ्रम था,
जो मेरे दिल ने..
महसूस किया था....
ग़र मान लूँ की...
सब झूठ था..भ्रम था...
तो भी तुम्हारी तरह,
मैं भी झूठी थी...
जो तुम्हारी झूठी आँखों को,
ना पढ़ सकी...
उलझन में हूँ...
कि ग़र गलत तुम्हे कहूँ...
तो गलत मैं भी हूँ..
कि गलत को चुना है मैंने....!!!
उन उलझनों को जिसमे..
तुम उलझा कर गये थे...
बंध सी गयी उन उलझनों में,
नही खोल पायी,
कोई गिरह...
ना ही मिला मुझे कोई सिरा...
उलझ कर गयी हूँ...
तुम्हारी बातो में,अहसासों में,
तुम्हारे वादों में...
नही समझ पा रही हूँ,कि
झूठ क्या था,तुम्हारा प्यार...
या तुम्हारी बाते या तुम्हारे वादे...
क्या सिर्फ छलावा था,
जो तुम्हारी आखो में देखा था,
या सिर्फ मेरा भ्रम था,
जो मेरे दिल ने..
महसूस किया था....
ग़र मान लूँ की...
सब झूठ था..भ्रम था...
तो भी तुम्हारी तरह,
मैं भी झूठी थी...
जो तुम्हारी झूठी आँखों को,
ना पढ़ सकी...
उलझन में हूँ...
कि ग़र गलत तुम्हे कहूँ...
तो गलत मैं भी हूँ..
कि गलत को चुना है मैंने....!!!
बहुत सुंदर कविता |
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता |
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 14 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुंदर भाव ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता |
ReplyDeleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......