Sunday 23 August 2015

मैं श्रृंगार करुँगी.....!!!

फिर आज...
मैं श्रृंगार करुँगी...
जब तक...
तुम से जी भर कर,
तारीफे नही सुन लुंगी...
तब तक ना...
तुमसे प्यार करुँगी...
फिर आज...
मैं श्रृंगार करुँगी...
माथे पर तुम्हारे होटों की,
निशानी रखूंगी...
आँखों में तुम्हारी नजरो की,
कहानी भर लुंगी...
लबों पर तुम्हारे नाम की,
मुस्कान रखूंगी
हथेलियों पर...
तुम्हारी हथेलियों की,
छुअन की महंदी रचुंगी..
मैं तो आज सिर्फ...
तुम्हारे लिए सजुंगी...
जब तक..
तुम से जी भर कर,
तारीफे नही सुन लुंगी...
तब तक ना...
तुमसे प्यार करुँगी...
फिर आज...
मैं श्रृंगार करुँगी...
मैं ना...
बिंदिया..चुड़ी..पयाल..
बिछुआ..हार...पहंनुगी..
मैं तो सिर्फ..
तुम्हारे रंग में रंगुगी..
जब तक...
तुम से जी भर कर,
तारीफे नही सुन लुंगी...
तब तक ना...
तुमसे प्यार करुँगी...
फिर आज...
मैं श्रृंगार करुँगी...!!!

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-08-2015) को "देखता हूँ ज़िंदगी को" (चर्चा अंक-2078) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ख्याल अच्छा है सजना भी चाहिए पर हा कोई तारीफ करने वाला भी तो हो

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