मुझे आज भी याद है,
वो खामोश सी शाम...
ना जाने कितने ही..
अफ़साने छिपाये गुजरती,
जा रही थी..
वो खामोश सी शाम....
जब हम मिले थे..
इस तरह हम ख़ामोश,
इक दूजे के साथ बैठे थे,
कि जैसे कोई बात ही ना हो...
हमारे अन्दर एक तूफान,
चल रहा था...
पर ख़ामोशी ने,
हमारे होठ सिल दिए थे....
इक ऐसी ख़ामोशी,
जिसके शोर में..
हम दोनों ख़ामोश हो गये थे..
फिर अचानक कुछ हुआ..
कोई हलचल सी हुई..
यूँ लगा कि...
जैसे साँसे चलने लगी हो..
जब तुम्हारी उँगलियां,
मेरी हथेलियों में...
कुछ ढूंड सी रही थी,
शायद उन लकीरों को,
जिसने हमे मिलाया था..
या फिर...
कुछ लिखना चाहती थी,
तुम्हारी उँगलियाँ...
मेरी हथेलियों पर....
मुझे नही पता कि,
जो तुम ढूंड रहे थे,
वो मिला की नही,
या जो तुम लिखना चाहते थे,
वो लिखा की नही...
पर हाँ मैं आज भी...
देर तक देखती हूँ....कि शायद
मैं वो पढ़ सकूँ जो,
तुम उस दिन मेरी हथेलियों,
पर लिख कर गये थे...
मुझे कुछ नही मिला,
सिवा ख़ामोशी के,
जो हर सवाल के जवाब में...
तुम छोड़ गये थे...!!!
वो खामोश सी शाम...
ना जाने कितने ही..
अफ़साने छिपाये गुजरती,
जा रही थी..
वो खामोश सी शाम....
जब हम मिले थे..
इस तरह हम ख़ामोश,
इक दूजे के साथ बैठे थे,
कि जैसे कोई बात ही ना हो...
हमारे अन्दर एक तूफान,
चल रहा था...
पर ख़ामोशी ने,
हमारे होठ सिल दिए थे....
इक ऐसी ख़ामोशी,
जिसके शोर में..
हम दोनों ख़ामोश हो गये थे..
फिर अचानक कुछ हुआ..
कोई हलचल सी हुई..
यूँ लगा कि...
जैसे साँसे चलने लगी हो..
जब तुम्हारी उँगलियां,
मेरी हथेलियों में...
कुछ ढूंड सी रही थी,
शायद उन लकीरों को,
जिसने हमे मिलाया था..
या फिर...
कुछ लिखना चाहती थी,
तुम्हारी उँगलियाँ...
मेरी हथेलियों पर....
मुझे नही पता कि,
जो तुम ढूंड रहे थे,
वो मिला की नही,
या जो तुम लिखना चाहते थे,
वो लिखा की नही...
पर हाँ मैं आज भी...
देर तक देखती हूँ....कि शायद
मैं वो पढ़ सकूँ जो,
तुम उस दिन मेरी हथेलियों,
पर लिख कर गये थे...
मुझे कुछ नही मिला,
सिवा ख़ामोशी के,
जो हर सवाल के जवाब में...
तुम छोड़ गये थे...!!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 11 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeletevery nice.....
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