चाँद भी तुम...
सूरज भी तुम..
आसमां भी तुम..
जमी भी तुम...
लबो की ख़ुशी भी तुम..
आखों की नमी भी तुम..
अन्धकार भी तुम..
रौशनी भी तुम...
मेरा तो सारा संसार हो तुम...
शिव भी तुम...
शक्ति भी तुम...
अर्चना भी तुम..
उपवास भी तुम...
जीत भी तुम...
हार भी तुम...
मेरे जीवन का आधार हो तुम...
मोह भी तुम..
सन्यास भी तुम...
सागर भी तुम...
प्यास भी तुम...
मेरे जीवन का...
वर्तमान भी तुम....इतिहास भी तुम...!!!
सूरज भी तुम..
आसमां भी तुम..
जमी भी तुम...
लबो की ख़ुशी भी तुम..
आखों की नमी भी तुम..
अन्धकार भी तुम..
रौशनी भी तुम...
मेरा तो सारा संसार हो तुम...
शिव भी तुम...
शक्ति भी तुम...
अर्चना भी तुम..
उपवास भी तुम...
जीत भी तुम...
हार भी तुम...
मेरे जीवन का आधार हो तुम...
मोह भी तुम..
सन्यास भी तुम...
सागर भी तुम...
प्यास भी तुम...
मेरे जीवन का...
वर्तमान भी तुम....इतिहास भी तुम...!!!
प्रेम की पराकाष्ठा है समर्पण...बहुत खूब...
ReplyDeleteजब 'मैं' खो जाता है तब सारा जगत उसी एक का रूप बन जाता है..
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