Tuesday 1 September 2015

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-19

166-
साथ तुम्हारा दूर उदासी
फैला दो ना बाहें अपनी
सच मैं धड़कन हो जाउंगी.....

167-
तेरी बातो से मेरी..
हर इक रचना रच जाती है...
कविता तो मैं लिखती हूँ...
कविता जैसी बाते..
तुमको आती है...

168-
मैं तुम्हे तलाश करूँ...
और तुम मुझे मिल जाओ...
इतनी तो आसान नही जिन्दगी...

169-
कई ख़त तुम्हारे लिये..
मैंने इस साल लिखे....
तुम्हारे उलझे हुए जवाब...
अपने अधूरे सवाल लिखे...
कई ख़त तुम्हारे लिये..
मैंने इस साल लिखे...
कुछ शिकायतो के दिन लिखे..
कुछ महीनो के प्यार लिखे...
कुछ तुम्हारी शरारते लिखी..
कुछ खुबसूरत ख्याल लिखे....

170-
अपने लिखे दो शब्दों से..
हर रोज तुम्हारी जिन्दगी में...
मिठास घोलने की...
कोशिश करती हूँ मैं....

171-
मैंने तुम्हे उस दिन पा लिया...
जिस दिन तुम्हे...
मुझे खो देने का डर महसूस हुआ....

172-
जब भी देखा खुद को दर्पन में...
होटों पर मुस्कान तुम्हारी थी..
हाथो में कंगन तुम्हारे नाम के थे..
आखों में तस्वीर तुम्हारी थी...
क्या कहती मैं..पगली..कि 
इस "सावन"में मन "साजन" हो गया..

173-
लम्हों में जो एक लम्हा था,
तुम्हारी उँगलियों में उलझी थी...
जो उँगलियाँ मेरी..
उनको सुलझाकर लिखना आसान नही....

174-
सावन की बारिश हो..
महेंदी से महकती 
हमारी हथेलियाँ हो....
फिर लौट आये...
वो हमारी बाते...
वो मस्तियां...और मेरी सहेलियाँ...

175-
पूरी दुनिया मुझे पढ़े तो क्या....
ग़र तुम मुझे ना पढ़ो तो ...
मुझे लिखना भला नही लगता...!!!

4 comments:

  1. पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.....

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  2. पूरी दुनिया मुझे पढ़े तो क्या....
    ग़र तुम मुझे ना पढ़ो तो ...
    मुझे लिखना भला नही लगता...!!!

    जब अपने ही तारीफ़ न करें तो क्या...

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  3. मैंने तुम्हे उस दिन पा लिया...
    जिस दिन तुम्हे...
    मुझे खो देने का डर महसूस हुआ...

    वाह।

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