Friday 18 September 2015

तलाशते है फिर..मेरे शब्द तुम्हे...!!!

तलाशते है फिर..
मेरे शब्द तुम्हे...
तुम नही हो,तो
कुछ लिखते ही नही...
यूँ कि हर बार शब्द पिरोते थे,
सिर्फ तुम्हे....
कि तलाशते फिर..
मेरे शब्द तुम्हे....
ये तो लिखते थे..
तुम्हारे चेहेरे की उदासियाँ,
तुम्हारी आखों की गहराइयाँ...
कि तुम नही हो तो,
शब्द पहचानते नही मेरी भी..
परछाईयाँ....कि
इन शब्दों को..
तुम्हारी खामोशियों को...
समझने का हुनर था..
जिसे तुम लब्ज़ नही दे पाते थे,
वो शब्द बन कर...
कागज पर उतरते थे...
ये शब्द ही तो है..
जो तुम्हे लिख कर..
मेरे दिल में उतरते जाते है...
तलाशते है फिर..
मेरे शब्द तुम्हे...!!!

4 comments:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-09-2015) को "प्रबिसि नगर की जय सब काजा..." (चर्चा अंक-2104) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 28 जनवरी 2016 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

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