Tuesday 22 September 2015

जब से तुमसे मिली...मैं प्रेम को लिखने लगी...!!!

जब से तुमसे मिली...
मैं प्रेम को लिखने लगी...
जब तुम्हारी आखों की,
गहराईयों में उतरी तो...
अंतहीन..अद्रश्य...
प्रेम को मैं लिखने लगी...
जब तुम्हारे स्पर्श को,
महसूस किया..
अनछुए-अनकहे...
प्रेम को लिखने लगी...
जब से तुम्हारी खुसबू बन कर,
तुम्हारी साँसों में...
घुलने लगी..
हवाओं में भी...
प्रेम की धड़कने सुनने लगी..
कि धड़कने...
प्रेम की लिखने लगी...
जब से तुम्हारी....
खामोशियों का हिस्सा मैं बनी..
प्रेम की कहानी-किस्से..
मैं लिखने लगी...
मैं प्रेम को लिखने लगी...
जब से तुम्हारी करवटो की,
बेचैनी मैं बनी...
तन्हाईया प्रेम की..
मैं लिखने लगी...
जब से तुम्हारी उदासियों को,
समझने लगी...
जुबां....प्रेम की...
मैं लिखने लगी...
जब से तुम्हारे साथ...
तय सफ़र करने लगी..
मंजिले...प्रेम की....
मैं लिखने लगी....
जब से तुम पर..
विश्वास करने लगी..
प्रेम को...मैं शाश्वत लिखने लगी....
जब से तुमसे मिली...
मैं प्रेम ही प्रेम लिखने लगी....!!!

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 24 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. प्रेम को...मैं शाश्वत लिखने लगी....
    जब से तुमसे मिली...
    मैं प्रेम ही प्रेम लिखने लगी....waah bahut sundar

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-09-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2108 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. प्रेम यूँ ही लिखा जाता है ..अति सुन्दर ..

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  5. तुम्हारी साँसों में...
    घुलने लगी..
    हवाओं में भी...
    प्रेम की धड़कने सुनने लगी.. ....वाह ... क्या बात है बहुत ही सुन्दर रचना है सुषमा !

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  6. बहुत सुंदर

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