Tuesday, 1 September 2015

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-20

176-
ये मौसम कह रहा है...
कही तो खूब बरसा है ये बादल..
कोई भीग रहा है,तर-बतर....
तो कोई इक बूंद को भी तरस रहा है आज कल...

177-
रात किसी के ख्वाब को,
आखों में भर कर,
जागती रही मेरी आखें....
मैं खामोश थी,
ना जाने कितने ही, 
सवालो का जवाब..
मांगती रही तुम्हारी आखें...

178-
नही जानती कि सपनो का राजकुमार कैसा होता है...
नही पता कि सपनो का राजकुमार कैसा होगा...
यक़ीनन कोई आम चेहरा ही...
सपनो के राजकुमार जैसा होगा....

179-
आ चुपके से तुम्हारे कानो में कुछ ऐसा बोल दूँ....
कि तुम मुस्कराते हुए अपनी आँखे खोल दो...

180-
डर है कि ये बारिश...
मेरा सब कुछ बहा न ले जाये.....

181-
बारिश की बुँदे.....और
तुम्हारी आखों से बरसता हुआ प्यार,
कैसे कहूँ किसने.....मुझे ज्यादा भिगोया है....

182-
मैं तुम्हे लिखती रही...
अपनी कविताओं में....
और तुम हमेसा रहे..
मेरी अलिखित पंक्तियों में.....

183-
बहुत खास है वो नज़र.....
जिन नजरो को मैं खास लगती हूँ......

184-
मैं इसलिये नही लिखती कि
मुझे लिखना अच्छा लगता है...
मैं इसलिए लिखती हूँ कि 
तुम्हे पढ़ना अच्छा लगता है....

185-
क्यों ना आज मैं कुछ ऐसा लिख दूँ....
जो तुम्हे बैचैन भी कर जाये...
और सुकून भी दे जाये.....

4 comments:

  1. बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
    कभी यहाँ भी पधारें

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  2. वाह वाह - लाजवाब

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति

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