176-
ये मौसम कह रहा है...
कही तो खूब बरसा है ये बादल..
कोई भीग रहा है,तर-बतर....
तो कोई इक बूंद को भी तरस रहा है आज कल...
177-
रात किसी के ख्वाब को,
आखों में भर कर,
जागती रही मेरी आखें....
मैं खामोश थी,
ना जाने कितने ही,
सवालो का जवाब..
मांगती रही तुम्हारी आखें...
178-
नही जानती कि सपनो का राजकुमार कैसा होता है...
नही पता कि सपनो का राजकुमार कैसा होगा...
यक़ीनन कोई आम चेहरा ही...
सपनो के राजकुमार जैसा होगा....
179-
आ चुपके से तुम्हारे कानो में कुछ ऐसा बोल दूँ....
कि तुम मुस्कराते हुए अपनी आँखे खोल दो...
180-
डर है कि ये बारिश...
मेरा सब कुछ बहा न ले जाये.....
181-
बारिश की बुँदे.....और
तुम्हारी आखों से बरसता हुआ प्यार,
कैसे कहूँ किसने.....मुझे ज्यादा भिगोया है....
182-
मैं तुम्हे लिखती रही...
अपनी कविताओं में....
और तुम हमेसा रहे..
मेरी अलिखित पंक्तियों में.....
183-
बहुत खास है वो नज़र.....
जिन नजरो को मैं खास लगती हूँ......
184-
मैं इसलिये नही लिखती कि
मुझे लिखना अच्छा लगता है...
मैं इसलिए लिखती हूँ कि
तुम्हे पढ़ना अच्छा लगता है....
185-
क्यों ना आज मैं कुछ ऐसा लिख दूँ....
जो तुम्हे बैचैन भी कर जाये...
और सुकून भी दे जाये.....
बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें
वाह वाह - लाजवाब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
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