हमारे ख्याल,कुछ भी तो,
एक जैसा नही था हमारे बीच....
फिर भी ना जाने क्या था हमारे बीच,
जो हमे जोड़ता था....
जो इक-दूसरे के करीब रखता लाता था.....
तुम्हारा बेवजह किसी बात पर,
रूठ जाना,मेरी समझ से बहार था..
फिर भी...मैं तुम्हे मनाने में लग जाती थी,
क्यों कि तुम्हारा रूठना,
मुझे तकलीफ देता था...
फिर क्यों ना बेवजह ही हो....
मैं मुखर सब कुछ तो कह जाती थी,
दिल-विल प्यार-व्यार की सारी बाते...
कुछ भी नही छिपा पाती थी तुमसे,
अपने शब्दों में दिल खोल कर,
तुम्हारे सामने रख देती थी....
और तुम खामोश...और ख़ामोशी से,
मेरा सारी बाते सुन कर,
मेरे सारा बचपना देखकर...
सिर्फ मुस्करा देते थे....
सच कहूँ तो. कभी बहुत गुस्सा आता था,
तुम्हारी इस खामोशी पर,
कितने बार तुमसे बहस की थी मैंने,
कि हर पल मैं ही क्यों कहूँ,
मैं ही क्यों करू...
और तुम हमेशा यही कहते,
तुम कहती,तुम लिखती हो...
तो तुम्हे समझने और,
पढ़ने के लिए....मैं हूँ ना...
सच्ची में कहाँ मिलती थी हमारी सोच,
हमारे ख्याल,कुछ भी तो,
एक जैसा नही था हमारे बीच....
फिर भी ना जाने क्या था हमारे बीच,
जो हमे जोड़ता था....
जो इक-दूसरे के करीब लाता था.....
तभी तो जिंदगी का...इक लम्बा सफ़र,
हमने गुजार दिया,क्यों की...
मुझे तुम्हारी ख़ामोशी समझ आने लगी,और
तुम्हे मेरा सब कुछ कहना,
मेरे बचपने पर...
मुस्करना अच्छा लगता था....
साथ रहने के लिये,
इक जैसा होना जरुरी नही है.....!!!