Saturday 21 May 2016

इक जैसा होना जरुरी नही है.....!!!

कहाँ मिलती थी हमारी सोच,
हमारे ख्याल,कुछ भी तो,
एक जैसा नही था हमारे बीच....
फिर भी ना जाने क्या था हमारे बीच,
जो हमे जोड़ता था....
जो इक-दूसरे के करीब रखता लाता था.....
तुम्हारा बेवजह किसी बात पर,
रूठ जाना,मेरी समझ से बहार था..
फिर भी...मैं तुम्हे मनाने में लग जाती थी,
क्यों कि तुम्हारा रूठना,
मुझे तकलीफ देता था...
फिर क्यों ना बेवजह ही हो....
मैं मुखर सब कुछ तो कह जाती थी,
दिल-विल प्यार-व्यार की सारी बाते...
कुछ भी नही छिपा पाती थी तुमसे,
अपने शब्दों में दिल खोल कर,
तुम्हारे सामने रख देती थी....
और तुम खामोश...और ख़ामोशी से,
मेरा सारी बाते सुन कर,
मेरे सारा बचपना देखकर...
सिर्फ मुस्करा देते थे....
सच कहूँ तो.  कभी बहुत गुस्सा आता था,
तुम्हारी इस खामोशी पर,
कितने बार तुमसे बहस की थी मैंने,
कि  हर पल मैं ही क्यों कहूँ,
मैं ही क्यों करू...
और तुम हमेशा यही कहते,
तुम कहती,तुम लिखती हो...
तो तुम्हे समझने और,
पढ़ने के लिए....मैं हूँ ना...
सच्ची में कहाँ मिलती थी हमारी सोच,
हमारे ख्याल,कुछ भी तो,
एक जैसा नही था हमारे बीच....
फिर भी ना जाने क्या था हमारे बीच,
जो हमे जोड़ता था....
जो इक-दूसरे के करीब लाता था.....
तभी तो जिंदगी का...इक लम्बा सफ़र,
हमने गुजार दिया,क्यों की...
मुझे तुम्हारी ख़ामोशी समझ आने लगी,और
तुम्हे मेरा सब कुछ कहना,
मेरे बचपने पर...
मुस्करना अच्छा लगता था....
साथ रहने के लिये,
इक जैसा होना जरुरी नही है.....!!!

Wednesday 18 May 2016

मैं खुद कविता बन जाऊं....!!!

क्यों ना मैं इक चित्रकार बन जाऊं,
तुम्हारी तस्वीर बनाऊं और,
रंग तुम्हारी जिंदगी में भरती जाऊं....
वो रंग जो तुमने कही,
बचपन में खो दिये है...
वो रंग तुम्हारी आखों में छिपे है..
सभी रंग तुम्हारी तस्वीर पर सजाऊँ,
रंगो सी रंगीन होती है जिंदगी,
तुम मिलो तो तुम्हे बताऊँ..
क्यों ना मैं कोई वाद्ययंत्र बजाऊं,
पियोनो की की बोर्ड पर,
तुम्हारी नाम की धुन बजाऊं,
बाँसुरी पर गीत सारे,
तुम्हारी पसंद के सुनाऊँ...
वो गीत जो तुम गुनगुनाते थे बचपन में,
वो धुन जिस पर...
कभी भी यूँ  झूम जाते थे..
तुम मिलो तो तुम्हे,
वो धुनें सारी वो गीत तुम्हारे,
जिंदगी इन्ही में कही,
तुम्हे याद दिलाऊं....
क्यों ना मैं कोई कवि बन जाऊं,
तुम्हारी कल्पनाओ को देकर शब्द,
मैं तुम्हारे प्यार के,
आसमान में उड़ जाऊं,
तुम्हारी भावनाओं और एहसासों को पिरो दूँ..
तुम मिलो तो खुद को पढ़ लो मुझमे...
मैं खुद कविता बन जाऊं....!!!

Tuesday 10 May 2016

वो गुलमोहर का पेड़.....!!!

मेरे रास्ते में खड़ा,
वो गुलमोहर का पेड़,
आज भी कई सवाल करता है मुझसे,
मैं जब भी इसके फ़ूलो की,
खूबसूरती को निहारती हूँ,
तो वो भी मेरी आँखों में,
अपने सवालो के जवाबो को ढूंढ़ता है...
और मैं हर बार नजरे चुरा कर,
उससे नजरे फेर कर,
आगे निकल जाती हूँ....
मैं हमेसा सोचती हूँ.. कि नही रुकूँगी,
उस गुलमोहर के पास,
फिर भी ना जाने क्यों,
उसकी खूबसूरती...
मेरी नजरो को बांध लेती है,
और मेरे कदम चलते-चलते,
अपने आप उसकी तरफ ठहर जाते है.....
वो पूछता है......मुझसे कि
मैं तो आज भी वही खड़ा हूँ,
उसी खूबसूरती को लिये,
फिर तुम क्यों नही ठहरती,
कुछ देर मेरे पास,मेरी छाँव में,
तुमने कितने ही ख्वाबो को बुना है,
कितनी ही तुम्हारी दिल की बातो का,
मैं गवाह हूँ.....तुम्हारे पहरो इन्तजार का,
इक मैं ही साथी रहा हूँ,
देखो आज भी मेरी डालिया,
फ़ूलो से लदी है....
क्यों नही आज भी,
तुम मेरी डालियों को हिला कर,
गुलमोहर उसकी राहो पर बिछा देती हो,....
मैं वही खामोश हो कर,
उसके सवालो को सुनती हूँ. .और,
उसी ख़ामोशी के साथ नजरे,
फेर कर चल पड़ती हूँ,
जिस तरह तुम उस दिन,
उस गुलमोहर के साथ,
मेरे सवालो के जवाब दिए बैगर,
ख़ामोशी दे कर चले गये थे.....

Tuesday 3 May 2016

तुम्हारे यादो के साथ आती थी...!!!

रात में नींद आज भी,
तुम्हारे यादो के साथ आती थी....
तुम नही भी होते हो....
कोई हवा कानों में,
तुम्हारी कोई अनकही बात कह जाती है.....
मैं चाँद की बाते करती हूँ तुमसे,
चांदनी छुप कर चुपके से मुस्कराती है..
मैं हर रोज कोरे कागज सा दिल,
सिरहाने ले कर सोती हूँ...
तुम्हारी याद कविता बन कर,
कागज पर उतर जाती है...
हर रात तुम्हारी याद की,
ताबीर बुनती है,
हर सुबह मेरी आँखों में,
सभी को तुम्हारी तस्वीर नजर आती है...
रात में नींद आज भी,
तुम्हारे यादो के साथ आती थी....