मेरे रास्ते में खड़ा,
वो गुलमोहर का पेड़,
आज भी कई सवाल करता है मुझसे,
मैं जब भी इसके फ़ूलो की,
खूबसूरती को निहारती हूँ,
तो वो भी मेरी आँखों में,
अपने सवालो के जवाबो को ढूंढ़ता है...
और मैं हर बार नजरे चुरा कर,
उससे नजरे फेर कर,
आगे निकल जाती हूँ....
मैं हमेसा सोचती हूँ.. कि नही रुकूँगी,
उस गुलमोहर के पास,
फिर भी ना जाने क्यों,
उसकी खूबसूरती...
मेरी नजरो को बांध लेती है,
और मेरे कदम चलते-चलते,
अपने आप उसकी तरफ ठहर जाते है.....
वो पूछता है......मुझसे कि
मैं तो आज भी वही खड़ा हूँ,
उसी खूबसूरती को लिये,
फिर तुम क्यों नही ठहरती,
कुछ देर मेरे पास,मेरी छाँव में,
तुमने कितने ही ख्वाबो को बुना है,
कितनी ही तुम्हारी दिल की बातो का,
मैं गवाह हूँ.....तुम्हारे पहरो इन्तजार का,
इक मैं ही साथी रहा हूँ,
देखो आज भी मेरी डालिया,
फ़ूलो से लदी है....
क्यों नही आज भी,
तुम मेरी डालियों को हिला कर,
गुलमोहर उसकी राहो पर बिछा देती हो,....
मैं वही खामोश हो कर,
उसके सवालो को सुनती हूँ. .और,
उसी ख़ामोशी के साथ नजरे,
फेर कर चल पड़ती हूँ,
जिस तरह तुम उस दिन,
उस गुलमोहर के साथ,
मेरे सवालो के जवाब दिए बैगर,
ख़ामोशी दे कर चले गये थे.....
Tuesday, 10 May 2016
वो गुलमोहर का पेड़.....!!!
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-05-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2340 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबेहद सुन्दर
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