वो दो लम्हे...
जो तुम्हारे साथ गुजरे...
दो सदियों के जैसे थे...
या कहूँ कि..
दो जन्मों की हो बात..
उन दो लम्हों में..
सब कुछ तो पा लिया मैंने,
उन दो लम्हों में..
बेइन्तहा प्यार...
तुम्हारी आखों में...
खुबसूरत शरारत तुम्हारी बातो में...
इक उम्मीद थी...
उन दो लम्हों में..
रातो के ख्वाब थे..
उन दो लम्हों में...
पहली बारिश में...
भीगी मिट्टी सी खुसबू थी,
उन दो लम्हों में...
खुदा की गयी...इबादत थी,
उन दो लम्हों में...
दो पन्नो में क्या लिखूं,
उन दो लम्हों को...
कि जिन्दगी की किताब थी...
उन दो लम्हों में....
उन दो लम्हों की,
जो करने बैठ गयी जो बात...
तो कम पड़ जायंगे..
इक दिन...इक रात...
इक जिन्दगी भी जो करुँगी,
बात तो खत्म ना होगी..
उन लम्हों की बात...
वो दो लम्हे...
जो मेरी जिन्दगी में,
सांसो की तरह है..
वो लम्हे जो मेरी आखों में,
ख्वाबो की तरह है...
वो दो लम्हे...
जो गुजरे थे जो तुम्हारे साथ,
मेरे हर सवाल के थे..
वो जवाब..
वो दो लम्हे....
जो मुकम्मल करते है...
मेरा ख्वाब...!!!
जो तुम्हारे साथ गुजरे...
दो सदियों के जैसे थे...
या कहूँ कि..
दो जन्मों की हो बात..
उन दो लम्हों में..
सब कुछ तो पा लिया मैंने,
उन दो लम्हों में..
बेइन्तहा प्यार...
तुम्हारी आखों में...
खुबसूरत शरारत तुम्हारी बातो में...
इक उम्मीद थी...
उन दो लम्हों में..
रातो के ख्वाब थे..
उन दो लम्हों में...
पहली बारिश में...
भीगी मिट्टी सी खुसबू थी,
उन दो लम्हों में...
खुदा की गयी...इबादत थी,
उन दो लम्हों में...
दो पन्नो में क्या लिखूं,
उन दो लम्हों को...
कि जिन्दगी की किताब थी...
उन दो लम्हों में....
उन दो लम्हों की,
जो करने बैठ गयी जो बात...
तो कम पड़ जायंगे..
इक दिन...इक रात...
इक जिन्दगी भी जो करुँगी,
बात तो खत्म ना होगी..
उन लम्हों की बात...
वो दो लम्हे...
जो मेरी जिन्दगी में,
सांसो की तरह है..
वो लम्हे जो मेरी आखों में,
ख्वाबो की तरह है...
वो दो लम्हे...
जो गुजरे थे जो तुम्हारे साथ,
मेरे हर सवाल के थे..
वो जवाब..
वो दो लम्हे....
जो मुकम्मल करते है...
मेरा ख्वाब...!!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-08-2015) को "राष्ट्रभक्ति - देशभक्ति का दिन है पन्द्रह अगस्त" (चर्चा अंक-2068) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रतादिवस की पूर्वसंध्या पर
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteउन दो लम्हों की,
ReplyDeleteजो करने बैठ गयी जो बात...
तो कम पड़ जायंगे..
इक दिन...इक रात...
इक जिन्दगी भी जो करुँगी,
बात तो खत्म ना होगी..
वाह ! बेहतरीन एहसास