मैं तुम्हारे साथ सूरज को,
निकलते देखना चाहती हूँ.....
तुम्हारे साथ शामो को,
ढलते देखना चाहती हूँ....
मैं तुम्हारे साथ ओस से,
भीगी घास पर,
नंगे पाँव चलना चाहती हूँ....
तुम्हारा हाथ थाम कर,
मैं टेढ़ी-मेढ़ी राहो पर,
गिरते-गिरते सम्हालना चाहती हूँ.....
अपनी हथेलियों से,
तुम्हारी हथेलियों में...
बारिश की बूंदो को,
समेटना चाहती हूँ.....
अपनी पलकों में,
तुम्हारी पलकों के सारे ख्वाबो को
छुपा लेना चाहती हूँ.....
मैं अपनी मुस्कराहटों को,
तुम्हारे लबो पर सजाना चाहती हूँ...
मैं अपनी धड़कनो को,
तुम्हारे दिल में धड़कते देखना चाहती हुँ....
इक बार जो तुम थाम लो हाथ,
मैं जिंदगी से जीतना चाहती हूँ........ !!!
निकलते देखना चाहती हूँ.....
तुम्हारे साथ शामो को,
ढलते देखना चाहती हूँ....
मैं तुम्हारे साथ ओस से,
भीगी घास पर,
नंगे पाँव चलना चाहती हूँ....
तुम्हारा हाथ थाम कर,
मैं टेढ़ी-मेढ़ी राहो पर,
गिरते-गिरते सम्हालना चाहती हूँ.....
अपनी हथेलियों से,
तुम्हारी हथेलियों में...
बारिश की बूंदो को,
समेटना चाहती हूँ.....
अपनी पलकों में,
तुम्हारी पलकों के सारे ख्वाबो को
छुपा लेना चाहती हूँ.....
मैं अपनी मुस्कराहटों को,
तुम्हारे लबो पर सजाना चाहती हूँ...
मैं अपनी धड़कनो को,
तुम्हारे दिल में धड़कते देखना चाहती हुँ....
इक बार जो तुम थाम लो हाथ,
मैं जिंदगी से जीतना चाहती हूँ........ !!!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-02-2015) को चर्चा मंच 1886 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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