मेरी चूड़ियों की खनक..
मेरे हाथो में रची...
महंदी की महक..
तुम्हे बहुत भाती थी..
तुम्हारी ही फरमाइश पर,
मैं हर रोज़ अलग-अलग रंगों की,
चूड़िया पहन कर आती थी...
और महंदी हर मौसम..
सिर्फ तुम्हारे लिये रचाती थी...
तुम हँसते हुये कहते थे...
ये महंदी से रची हथेलिया..
चूड़ियों से सजी कलाई...
मुझे खिचती है...तुम तक...
और...तुम किसी फिल्म का,
डायलाग बोलते थे..कि
""ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर""..और.
फिर दोनों हँसते रहते थे....
मेरी चूड़िया....तुम्हारी छुअन..
आज भी महसूस कर..शरमाती है...
मेरी महंदी...आज भी तुम्हारे स्पर्श को,
महसूस कर और....भी निखर जाती है....
और यही सच भी है....
कभी हाथो में टूटती चूडिया...
कभी आखों का बिखरता काजल...
कभी तेज होती साँसे...
कभी धडकनों की हलचल.....
ये और कुछ नही.....
निशानिया है प्यार की....!!!
""ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर""..और.
फिर दोनों हँसते रहते थे....
मेरी चूड़िया....तुम्हारी छुअन..
आज भी महसूस कर..शरमाती है...
मेरी महंदी...आज भी तुम्हारे स्पर्श को,
महसूस कर और....भी निखर जाती है....
और यही सच भी है....
कभी हाथो में टूटती चूडिया...
कभी आखों का बिखरता काजल...
कभी तेज होती साँसे...
कभी धडकनों की हलचल.....
ये और कुछ नही.....
निशानिया है प्यार की....!!!
बहुत की सुंदर और प्रेम को दर्शाती कविता ....... बहुत खूब... भई वाह .... इतनी सुंदर कविता लिखने के लिए आपका आभार...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
कोमल भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति. बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत अच्छा !
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास
लाजवाब प्रस्तुति...
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