वो तुम्हारी आँखों की खामोश बाते,
ना जाने कब मुझे समझ आने लगी,
वो कुछ ना कह कर तुम्हारा मुस्करा देना,
ये अंदाज़ तुम्हारे....
ना जाने कब मेरी धड़कनो को बढ़ाने लगे..
मंजिले तो कब की,
मैंने पीछे छोड़ दी,
ना कब तुम्हारे साथ...
ये सफर ही मुझे रास आने लगे....
वो चाँद,वो तारे,
वो रातो की बाते अब लिखी जाती नही मुझसे..
अब तो मेरे ख्यालो में,
सिर्फ तुम्हारे एहसास मुस्कराते है,
मेरी धड़कनो से तुम्हारे जज्बात,
मेरे शब्दों में लिखने लगे...
वो तुम्हारी आँखों की खामोश बाते,
ना जाने कब मुझे समझ आने लगी..!!!
Wednesday, 29 March 2017
वो तुम्हारी आँखों की खामोश बाते..!!!
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बहुत ख़ूब !सुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
ReplyDeleteसुन्दर।।।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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