Saturday 4 March 2017

वुमेन डे"ना मनाना पड़े...!!!

वूमेन डे....😊
लीजिये ये इक निर्धारित किया गया है,
स्त्री के लिए,कहते है कि,
स्त्रियों के सम्मान के लिए ये दिन चुना गया है...
पर मैं आज तक समझ नही पायी,
कि क्या सच में किसी दिन की जरुरत पड़ती है,
स्त्री को सम्मान देने के लिए..
जो स्त्री सृष्टि को जन्म देती है,
जो खुद आदिशक्ति है..
क्या उसे किसी दिन की जरुरत है..
ये सिर्फ कुछ लोगो ने अपनी,
आत्मसंतुष्टि के लिए,
तीन सौ पैसठ दिन,
जिस स्त्री नजरअंदाज करते है,
उन्होंने इक दिन बना दिया,
और ये जता दिया कि,
हम स्त्री का सम्मान करते है....
और स्त्री ने भी मुस्करा कर,
उनका ये इक दिन का सम्मान रख लेती है....
और पूछती है कि कभी कोई,
"मेन डे"क्यों नही मनाया जाता?
क्यों कि इक स्त्री ने,
पुरुष को हमेसा सम्मान देती है,
पिता के रूप में,भाई के रूप में,पति के रूप में..
उसने सबकी भावनाओ को,
उनके बिना कहे समझा है,
बिना किसी स्वार्थ के,निश्छल,
हर रिश्ते को निभाती है...
तभी तो ये "वूमेन डे"मानाने वालो को,
कभी "मैन डे"की जरुरत नही महसूस की...
आप स्त्री के आत्मसम्मान की बात करते है,
पर आप ये भूल जाते है,
जिस स्त्री ने आपको सम्मान करना सिखाया है,
वो खुद अपने आत्मसम्मान की रक्षा कर सकती है,
और गर कही वो अपना आत्मसम्मान छोड़ती है,
तो इसका अर्थ ये नही कि,
वो कमजोर है,मुर्ख है..
बल्कि वो आपको बहुत प्यार करती है,
रिश्तों को संजोना जानती है...
इस सृष्टि में इक मात्र स्त्री ही है,
जो अपने रिश्तों के लिए,
किसी भी हद तक जा सकती है...
जिस स्त्री ने अपने माथे पर सजा कर,
आपको जो सम्मान दिया है...
उसकी कीमत ये इक दिन"वुमेन डे"
तो नही हो सकता है...
चलिये इस बार कुछ ऐसा करिये,
कोई संकल्प ऐसा लीजिये,
कि आपको किसी भी स्त्री के लिए,
"वुमेन डे"ना मनाना पड़े...

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (07-03-2017) को

    "आई बसन्त-बहार" (चर्चा अंक-2602)

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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