साल बदलते है....तारीखे बदलती है..
घड़ी की सुइयों की तरह,
कुछ भी ठहरता नही है.....
हर साल की तरह दिवाली आती है होली आती है,
न दीयों की रौशनी ही ठहरती है...
न ही होली का कोई रंग ही चढ़ता है...मेरी जिन्दगी में...
हर बार ख्वाब टूटते है उम्मीदे टूटती है....
हर बार सम्हलती हूँ और.....
फिर टूट कर बिखरती हूँ मैं....
हर बार ढूंढ़ कर लाती हूँ खुद को,
और हर बार भीड़ में खो जाती हूँ...
खुद के ही सवालो में उलझ कर रह जाती हूँ ......
सफ़र पर चलती हूँ सबके साथ,
सभी मुझसे आगे निकल जाते है,
और मैं न जाने किसके
इन्तजार में पीछे रह जाती हूँ......
इन्तजार में पीछे रह जाती हूँ......
डायरी के खाली पन्नो की तरह,
मैं भी खाली हो चुकी हूँ....
न शब्द ही मिलते है मुझे,
न ही अर्थ समझ पाती हूँ.....अपने इस खालीपन का...
थक चुकी हूँ....
इन शब्दों से खुद को बहलाते-बहलाते,
थक चुकी हूँ....
थक चुकी हूँ....
खुद को समझाते-समझाते,
बस अब और नही....
बस अब और नही......
ठहर जाना चाहती हूँ.....
बिखर जाना चाहती हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहती हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह....
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहती हूँ......!!!
बहुत बढ़िया सुषमा जी !
ReplyDeleteसादर
शायद इसी का नाम ज़िन्दगी है.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
बहुत सुन्दर सुषमा जी !
ReplyDeleteBahut sundar...kaash theherna mumkin hota
ReplyDeleteबस अब और नही......
ReplyDeleteठहर जाना चाहती हूँ.....
बिखर जाना चाहती हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहती हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह....
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहती हूँ
बहता पानी स्वच्छता और निर्मलता की निशानी है. बहना जीवन और चेतनता की निशानी है अतः आपसे आग्रह ठहराव की जगह प्रवाह को जीवन में स्थान दें . आपकी रचना में बहुत दर्द छिपा है वह केवल कविता का ही भाव रहने दें .मंगलकामना संग .मित्रवत शुभेच्छु .
भावों से सजी बढ़िया रचना |
ReplyDeleteஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
बहुत भावपूर्ण रचना .... मन की कसक को कहती हुई ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं
बस अब और नही......
ReplyDeleteठहर जाना चाहती हूँ.....
बिखर जाना चाहती हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहती हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह....
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहती हूँ......!!!
बेहद सशक्त भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
कभी कभी यूँ भी होता है....मन में एक टीस उठती है..
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
अनु
जिंदगी की उलझनों में ठहराव भी जरुरी है ....
ReplyDeleteठहरना ज़रूरी भी है सोचने के लिए
ReplyDeleteजिन्दगी उलझनों से भरी है किसी मोड़ पर ठहराना भी अच्छा होता है ..मन की कसक बताती कोमल अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteईश्वर करे कि यह सिर्फ कविता हो......बहुत दर्द छिपा है इसमें......शानदार ।
ReplyDeletehaan haan break le lijiye.. chalte rehna to fir hoga hi... :)
ReplyDeleteदर्द भरी रचना ....जिंदगी में कभी यूँ ही ऊब होने लगती है शायद हम जो कुछ हाथ में है उसके छूट जाने के डर से बेवजह उससे चिपके रहते हैं इसीलिये ..कुछ दिनों के लिए सब छोड़कर नए सिरे से शुरू करना सुखद होता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमन को झकझोरने वाली रचना.
ReplyDeleteसाल बदलते है....तारीखे बदलती है..
घड़ी की सुइयों की तरह,
कुछ भी ठहरता नही है.....
हर साल की तरह दिवाली आती है होली आती है,
न दीयों की रौशनी ही ठहरती है...
न ही होली का कोई रंग ही चढ़ता है...मेरी जिन्दगी में...
वक़्त तो हर आहनी शै को भी बदलना जानता है तो फिर बदलाव की बयार भी आएगी. बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना.
बहुत सुंदर कविता |
ReplyDeletebahut achchhi rachna badhaaii
ReplyDeleteशब्दों की जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी..कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने.बहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने...बहुत खूब..
बस अब और नही......
ReplyDeleteठहर जाना चाहती हूँ.....
बिखर जाना चाहती हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहती हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह....
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहती हूँ......!!
bahut khoob sushma ji
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteकभी कभी ऐसा ही महसूस करते हैं हम दर्द और दर्द पर चलते जाना ही तो जिंदगी है । बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत उम्दा रचना ह्रदय में बस गई, बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteभाव पूर्ण और उम्दा रचना है सुषमा जी |
ReplyDeletekoi ni koi ni hota hai. Bahut hi pyari rachana rachi hai.
ReplyDeletebahut hi sunder paktiya... man ki gahraeeyon se nikli haui.
ReplyDeleteबहुत खूब - अति सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति । आपकी रचना मन को तरंगायित कर गई । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteबस अब और नही......
ReplyDeleteठहर जाना चाहती हूँ.....
बिखर जाना चाहती हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहती हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह....
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहती हूँ......!!!
very beautifully expressed...