हर पल हर लम्हा खुद से ही लड़ रही हूँ मैं...
सवाल जवाबो के इन उलझनों में,
खुद के अन्दर चल रहे.....तुफानो से हर पल
बिखर रही हूँ मैं.......
बिखर रही हूँ मैं.......
एक तरफ मेरे साथ मेरी भावनाओ की गहराइयाँ है.....
इक तरफ मेरी तन्हाईयाँ है,
मंजिल की तलाश में दर-दर भटक रही हूँ मैं.....
किसी के इन्तजार में अंजान किसी आहट पर,
सहम कर ठहर रही हूँ मैं......
अपनी चाहतों,अपनी ख्वाइशों में,
अपनी चाहतों,अपनी ख्वाइशों में,
टूटने की हद तक गुजर रही हूँ मैं.......
इक रौशनी की तलाश में कितने,
इक रौशनी की तलाश में कितने,
अंधेरो से घिर रही हूँ मैं.....
इतनी तन्हा हो गयी हूँ कि......
खुद को भी अनजान सी लग रही हूँ मैं........!!!
इतनी तन्हा हो गयी हूँ कि......
ReplyDeleteखुद को भी अनजान सी लग रही हूँ मैं........!!!
आपने बहुत ही खूबसूरती के साथ अपने इन भावों को प्रस्तुत किया हैं।
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
कितने सारे फूल खिले हैं,
ReplyDeleteबिखरे रंग सुगंध हवा है,
उड़ती तितली पक्षी गाते,
फिर उपवन क्यों उदास है...
सुंदर प्रस्तुति
सादर-देवेंद्र
मेरे ब्लाग पर नई पोस्ट अन्नदेवं,सृष्टि-देवं,पूजयेत संरक्षयेत पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत सुन्दर. आभार [कौशल ]आत्महत्या -परिजनों की हत्या [कानूनी ज्ञान ]मीडिया को सुधरना होगा
ReplyDeleteकिसी के इन्तजार में,
ReplyDeleteअंजान किसी आहट पर,
सहम कर ठहर रही हूँ मैं......
जी .... ठहरा ही कहां जा सकता है......?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteइतनी तन्हा हो गयी हूँ कि......
ReplyDeleteखुद को भी अनजान सी लग रही हूँ मैं........!!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
प्रेरक सार्थक पोस्ट हेतु आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइक रौशनी की तलाश में कितने,
ReplyDeleteअंधेरो से घिर रही हूँ मैं.....
इतनी तन्हा हो गयी हूँ कि......
खुद को भी अनजान सी लग रही हूँ मैं.
चलिए हम दुआ माँगते हैं ये तन्हाई टूटे और आपको मंजिल मिले
बहुत ही बढ़िया सुषमा जी !
ReplyDeleteसादर
बेहद भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteइक रौशनी की तलाश में कितने,
अंधेरो से घिर रही हूँ मैं.....
इतनी तन्हा हो गयी हूँ कि......
खुद को भी अनजान सी लग रही हूँ मैं........!!!
very touchy line......
वाह सुन्दर उम्दा प्रस्तुति खासकर ये पंक्तियाँ तो दिल को छू गईं
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
एक तरफ मेरे साथ मेरी भावनाओ की गहराइयाँ है.....
इक तरफ मेरी तन्हाईयाँ है,
मंजिल की तलाश में दर-दर भटक रही हूँ मैं..
यही आत्ममंथन जीवन का सार है, सुंदर रचना.
ReplyDeleteakelepan ka khubsurat chitran kiya hai apne...sundar
ReplyDeleteजीवन में कभी ऐसे पल भी आते हैं जब हम खुद से भी अंजान हो जाते हैं...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति ...
अनु
बहुत ही खूबसूरत भाव .....
ReplyDeleteMysterious mood wali post.. :)
ReplyDeleteयह स्थिति शायद तब आती है जब हम खुद से मिलते हैं...और फिर कुछ याद आता है और बहुत कुछ पीछे छूट जाता है..
ReplyDeleteअपने वजूद के ऊपर एक लाजवाब और सराहनीय रचना..|
सादर नमन|
-मन्टू
सुन्दर कविता. साहिर ने कहा था-
ReplyDeleteरात भर का मेहमाँ अँधेरा
किसके रोके रुका है सवेरा
सुन्दर लिखा है ..
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteअंतर्द्वंद परन्तु कुछ कर दिखने की ख्वाइश ....सार्थक रचना
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति, सार्थक प्रस्तुति.
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ReplyDeleteकल 08/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
सुन्दर रचना
ReplyDeletebahut umdaa
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना है
ReplyDelete- vivj2000.blogspot.com
सुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeletebahut achha likha hein...
ReplyDeleteइक रौशनी की तलाश में कितने,
अंधेरो से घिर रही हूँ मैं....
कभी तनहा सी लगती है जिंदगी कभी जैसे एक भीड़
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