काल चक्र घूमता है....
कल तक जो हाथ दीया लिए हुए,
दहलीज़ पर खड़े पुरे,
घर को रौशन कर रहे थे...
कि आज उन्ही हाथो ने,
मेरे हाथों में दीया थाम कर,
मुझे दहलीज़ पर खड़ा कर दिया है....
कल तक अंधेरो की,
परवाह किये बैगर,....जिस रौशनी पर,
मैं गुमान कर रहा था,
आज उसी रौशनी की कीमत,
मेरे अंधेरो ने मुझसे ली है....
कल तक जिन हाथो से,
मैं फुलझड़ियों की जिद,
पटाखों के शोर मांगता था...
आज उन्ही फुलझड़ियों की चिंगारी से,
पटाखों के शोर से,
मैं इस घर बचा रहा हूँ...
काल चक्र घूमता है....
कल तक मैं जहाँ महफूज़ था,
गहरी नींद में सो रहा था...
आज देर रात तक जागता हूँ...
काल चक्र घूमता है....
कल तक तुम जहाँ खड़े थे साथ मेरे,
आज वही अकेले मैं खड़ा हूँ..!!!
Friday, 28 October 2016
काल चक्र घूमता है....!!!
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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर , दीप पर्व मुबारक !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुभकामनाएं ।
ReplyDeleteएक पक्ष यह भी होता है त्यौहारों का... बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
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