कहाँ खबर थी,तुम्हारे साथ वो...
होली आखिरी थी...
नही तो जी भर कर...
खेल लेती मैं होली...
तुम्हारी हथेलियों से...
मेरे गालो पर लगा वो गुलाल,
तो कब का मिट गया गया था..
पर तुम्हारी हथेलियों के निशां,
आज भी मेरे गालो पर नजर आते है....
मुझे याद है...जब तुमने हँसते हुऐ,
गुलाल से सिंदूर भर दिया था,
तुम्हारे लिए वो महज...
इक वो होली का रंग था,
पर मेरे लिये जिंदगी जैसे...
उसी इक रंग पर ठहर गयी हो.....
कहाँ खबर थी..
तुम्हारे साथ वो होली आखिरी थी,
नही तो जवाब..
सारे गुलाल के तुमसे पूछ लेती...!!!
Saturday 19 March 2016
तुम्हारे साथ वो... होली आखिरी थी...
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आपकी लिखी रचना " पांच लिंकों का आनन्द " पर कल रविवार 20 मार्च 2016 को http://www.halchalwith5links.blogspot.in पर लिंक की जाएगी । आप भी आइएगा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....!
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