आज भी गली के उस मोड़ पर,
वो आम का पेड़ खड़ा है,
मेरे साथ वो भी....
तुम्हारे आने के इंतजार में,
तुम्हारी राह देखता है...
जिसके पीछे हम-तुम,
छुप्पन-छुपाई खेलते थे.....
जिसकी डाली पर,
सावन के झूले पड़ते थे,
और तुम मुझे झुलाते थे..,
ना जाने मैंने कब तुम्हे ढूँढने के लिये,
मैंने अपनी आँखे बंद की,
तुम यूँ छुप गये कि...
आज भी तुम्हे नही ढूंढ़ नही पाई...
वो झूला आज भी झूलता है,
ऐसे कि जैसे तुम उसे झूला रहे हो....
आज भी गली के उस मोड़ पर खड़े,
उस पेड़ के पास से जब मैं गुजरती हूँ,
कुछ देर अपनी आँखे बंद,
करके तुम्हे ढूँढती हूँ...
Sunday, 3 July 2016
गली के उस मोड़ पर......!!!
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारतीय सेना के दो महानायकों को समर्पित ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteoh.....bahut marmik ....meri aapki sabki anubhuti ko wayakt karti rachna ,,,
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 05/07/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।