Thursday 28 July 2016

बरबस तुम्हारी याद आ जाती है...!!!

जब ना तब ये बारिश बरस जाती है...
इसका क्या ये तो.....
बरस के गुजर जाती है.
पर बारिश के साथ ही...
बरबस तुम्हारी याद आ जाती है...
बरसती बुँदे जमीं की प्यास तो बुझा देती,
सोंधी खुश्बुओं को बिखेर कर,
बुँदे गुजर जाती है...
पर इन बूंदो के साथ रेत पर तपती,
तुम्हारी यादे ठहर जाती है....
बिजलियाँ चमकती है...
बादल गरजते हुए....
हवाओं के साथ गुजर जाते है..
पर ये गरजते बादलो की,
गड़गड़ाहट के साथ तुम्हारी यादे,
धड़कनो में धड़कती ठहर जाती है...

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर

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