Wednesday 3 August 2016

फुरस्तो का प्यार था हमारा....!!!

तुमने फुरस्तो में समझ मुझे,
फुरस्तो में पढ़ा मुझे,
मैं हमेशा अपने लिए,
तुम्हारे वक़्त का इन्तजार करती रही,
कि क्या कहूँ की....
फुरस्तो का प्यार था हमारा....
मैं हर लम्हे में तुम्हे जीती रही,
तुम फुर्सत से वक़्त निकालते रहे,
मैं तुम्हे ख्वाइशें अपनी बताना चाहती थी,
तुम्हारा हाथ थाम कही दूर,
निकल जाना चाहती थी,
तुम फुरस्तो में इन्हें टालते रहे है...
कि क्या कहूँ की...
फुरस्तो का प्यार था हमारा....
मैं भीड़ में तुम्हारी आँखों में,
अपने लिये प्यार देखना चाहती थी,
बहुत उलझनों में भी,
तुम्हारे होठो से....
अपना नाम सुनना चाहती थी....
पर तुम मेरे लिये...
अपनी फुरस्तो का प्यार तलाशते रहे,
मैं भागती रही जाते हुए,
वक़्त को थामने के लिये,
तुम हमारे प्यार को फुरस्तो में टालते रहे....
कि क्या कहूँ की फुरस्तो का प्यार था हमारा....

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-08-2016) को "बिखरे मोती" (चर्चा अंक-2425) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. काफी दिनों बाद आप के ब्लौग पर आ सका...
    सुंदर....

    ReplyDelete
  3. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 05/08/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    ReplyDelete