Friday 12 August 2016

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-26

231.
हमारी जिंदगी हम पर ही बोझ तब हो जाती है,
जब हम किसी इक शख्स को,
अपनी जिंदगी मान लेते है...
और उस शख्स के लिए हम...
महज उसकी जिंदगी का हिस्सा होते है...

232.
कभी-कभी लगता है कि...
मैं तुम्हे समझ ही नही पायी,जिन एहसासों को लगता था,
तुम बिना कहे समझोगे,
वो कह कर भी तुम्हे समझा ना पायी.....

233.
जब तुम प्यार को समझना तो,
मुझे भी बता देना,....
जब कभी बेपरवाह, बेफिक्री से चाहना जीना,
मुझे हमसफ़र अपना बना लेना....

234.
मेरी कविताओं में तुम हो,या यूँ कहूँ की,
तुम से ही मेरी कविताएं है....

235.
कभी-कभी सब कुछ होते हुए भी...
कितना खालीपन सा लगता है....

236.
गर तुम कहते हो,मेरी कविताओं को...
तुम्हे पढ़ना अच्छा लगता है...
यकिनन मुझे भी....
तुम्हे कविताओं में लिखना अच्छा लगता है...

237.
तुम हो तो मुझे सभी पढ़ लेते है
मुस्कराते हुए....मैं तुम्हारी दीवानी हूँ...कह देते हैे...

238.
अगर तलाश कर सको तो मेरे शब्दों में खुद को....
तो मेरे शब्दों को अर्थ मिल जायेंगे....
कविता कभी मैंने लिखी ही नही...
लिखनी आती भी नही......सिर्फ शब्द है.......और इन शब्दों मैं नही सिर्फ 'तुम' हो.........

239.
आई है मेरा प्यार बन कर ये घटायें,
तुम जो इक इशारा करो तो ये बरस जाये..

240.
मुझे लगे ना किसी की नजर, कुछ इस तरह आँखो में,
रह जाओ नजर बन कर....

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