मैं और तुम से कही उस पार,
क्यों ना तुम्हारी राधा बन जाऊं....
तुम जी लो सदियो की तरह मुझे,
मैं पा लूँ जन्मो-जन्मो की तरह तुम्हे...
क्यों ना तुम्हारी राधा बन जाऊं...
तुम रहो ना मेरे साथ जिंदगी भर,
तुम चलो ना मेरे साथ किसी सफर पर...
फिर भी मैं तुम्हारी मंजिल बन जाऊं,
क्यों ना मैं तुम्हारी राधा बन जाऊं....!!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-08-2016) को "जन्मे कन्हाई" (चर्चा अंक-2446) पर भी होगी।
ReplyDelete--
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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