Friday 12 August 2016

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-27

241.
हमारे प्यार के गवाही देंगे,ये पल,
लम्हे,शाम-ओ-सहर...
गवाह बनेगें..वो ख्वाब की रात,
वो मुस्कराती सुबह,वो दिन के पहर....

242.
सुनो आहुति....
तुम्हारे साथ वो सुबह जो नींद में होकर भी तुम्हे बंद पलकों से चुपके से देख लेना,इस डर से कि कही मैं तुम्हारे साथ हूँ,ये कोई सपना तो नही...तुम पास हो इस यकीन से मुस्कराना...कि मेरे सपने भी सच होते है..

243.
मैं इसलिये नही लिखती कि,
मुझे लिखना अच्छा लगता है...
मैं इसलिए लिखती हूँ कि,
तुम्हे पढ़ना अच्छा लगता है.....

244.
एहसास शब्दों में बयाँ होते तो बताती तुमको,
इन बूंदों संग मैं भी लिपट जाती तुमसे...

245.
खामोशियो से खामोशियों का,
पता लगाना जानते हैं ........
वो जितना कह भी नही पाते,
उतना हम खामोश होना जानते हैं ...!

246.
नही भाती तुम्हारे चेहरे पर उदासियां,
मुझे अंदर से तोड़ती है तुम्हारी खामोशियाँ.....

247.
हाँ सच है तुम्हारे लिये आँखो में आँसू है...
इक सच और भी,
ये आँसू तुम्हारी वजह से नही है......

248.
तुम्हारी ख़ामोशी जो टूटती नही है....
मुझे तोड़ती जाती है....

249.
दो ही वजह है मेरे लिखने की....
तुम्हारे लिये ही मैं लिखती हूँ...
और तुम ही हो जो..
मुझसे लिखवा लेते हो....

250.
तूफानों से कह दो कि आ जाये जैसे आना हो,
मैंने भी उनका हाथ थाम कर रखा है....

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-08-2016) को "कल स्वतंत्रता दिवस है" (चर्चा अंक-2434) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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