Thursday, 18 August 2016

तुम्हारे एहसास को...!!!

रात बेवक़्त जब नींद खुलती है,
मैं तुम्हारे ख्यालो की स्याही से,
आँखों के रत-जगे लिख देती हूँ..
हवा का कोई झोंका,
जब दरवाज़े का सांकल खटखटाती है
मैं तुम्हारे आने की आहट लिख देती हूँ....
अधखुली आँखों से जब अपने,
साथ जागते चाँद को देखती हूँ,
बाते सारी उसे अपने दिल की कह देती हूँ.....
तुम नही रहते हो मेरे आस-पास,
फिर भी तुम्हारे एहसास को,
हर पल मैं जी लेती हूँ....!!!

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-08-2016) को "आदत में अब चाय समायी" (चर्चा अंक-2440) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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