Tuesday 10 October 2017

बिखरती चली गई...!!!

प्यार इक शब्द...
जो दिल से दिल को जोड़ता है,
बस इतना ही तो मैं समझती थी..
कोई होता है जो,
जाने कब कहाँ मिल जाये,
कब वो किसी के ख्वाबो-ख्यालो,
पर छा जाये,
बस इतना ही तो जानती थी,
समझती थी मैं प्यार को...
तुम्हारे प्यार में यूं ही गहराइयों में,
उतरती चली गयी..
बहुत सीधी सी जो दिखती थी,
जो राहे तुम तक पहुँचने की,
जाने कब उलझती चली गयी...
मैं प्यार को अपने शब्दो से,
तुम तक पहुँचाना चाहती थी..
तुम्हारे शब्दो को घाव से,
मैं किसी असहनीय दर्द की खाई में,
धसती चली गयी....
तुम्हे मुस्कराने की वजह ढूंढती रही हर पल,
हर पल के साथ,
मै हँसी अपनी खोती चली गयी....
तुम्हारा साथ देने की जिद में..
मैं खुद को छोड़ कर,
तुमसे जुड़ती चली गयी...
तुम छोड़ कर जब चले गये..
मैं तब हर पल टूट कर,
बिखरती चली गई...!!!

1 comment: