यूँ ही कुछ लिखते-लिखते इतिहास भी रच सकती हूं मैं....
Saturday, 24 June 2017
जब सफर पर मैं रहती हूँ...!!!
तुम्हारे साथ जब मैं चलती हूँ,
राहे कहाँ याद रहती है मुझे,
गालिया भी मैं भूल जाती हूँ..
निगाहे तो सिर्फ अपनी,
मंजिल पर यानि,
तुम पर ठहरी रहती है..
किन राहो से पहुँची हूँ,
इसकी परवाह कहाँ करती हूँ....
तुम्हारे साथ जब सफर पर मैं रहती हूँ...
waah....bahut sundar bhaw .....mere blog par bhi aayen ....
ReplyDelete