हर बार खुद को ढूंढ़ कर....
खुद से मिलाती हूँ मैं.....
तुम मिले थे....
कभी जिन राहो में...
फिर उन्ही राहो पर कही रुक ना जाऊं....
उन राहो से तुम्हारे निशानों को,
मिटाती हूँ मैं....
तुम अब फिर न मिलोगे कभी.....
साथ न दोगे कभी...
तुम अब कही नही हो....
हर बार ये सच...
खुद को बताती हूँ मैं.....समझाती हूँ मैं.....
जब कभी कोई ख्वाब सजाती हूँ मैं....
खुद को ही नही उसमे पाती हूँ मैं....
कितना भी ले आऊं खुद को......तुमसे दूर...
हर बार खुद से ही हार जाती हूँ मैं....
चलती हूँ....किसी भी राह...
तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं.....
खुद से मिलाती हूँ मैं.....
तुम मिले थे....
कभी जिन राहो में...
फिर उन्ही राहो पर कही रुक ना जाऊं....
उन राहो से तुम्हारे निशानों को,
मिटाती हूँ मैं....
तुम अब फिर न मिलोगे कभी.....
साथ न दोगे कभी...
तुम अब कही नही हो....
हर बार ये सच...
खुद को बताती हूँ मैं.....समझाती हूँ मैं.....
जब कभी कोई ख्वाब सजाती हूँ मैं....
खुद को ही नही उसमे पाती हूँ मैं....
कितना भी ले आऊं खुद को......तुमसे दूर...
हर बार खुद से ही हार जाती हूँ मैं....
चलती हूँ....किसी भी राह...
तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं.....
एक प्यारा सा अहसास...
ReplyDelete
ReplyDeleteमन को छूती हुई सुंदर अनुभूति
बेहतरीन रचना
बधाई
जीवन बचा हुआ है अभी---------
कितना भी ले आऊं खुद को......तुमसे दूर...
ReplyDeleteहर बार खुद से ही हार जाती हूँ मैं....
चलती हूँ....किसी भी राह...
तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं.....
very nice
कोमल भावों से सजी रचना ....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्रेम में हर राह उसी तक ले जाती है..जैसे सभी प्रणाम गोविन्द तक पहुंच जाते हैं...
ReplyDeleteक्या बात है आदरेया-
ReplyDeleteआपका आभार-
खुद को ही नही उसमे पाती हूँ मैं....
ReplyDeleteकितना भी ले आऊं खुद को......तुमसे दूर...
हर बार खुद से ही हार जाती हूँ मैं....
चलती हूँ....किसी भी राह...
तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं...
वाह.सुन्दर प्रभावशाली ,भावपूर्ण ,बहुत बहुत बधाई...
बहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteबहुत सुंदर
TV स्टेशन ब्लाग पर देखें .. जलसमाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
http://tvstationlive.blogspot.in/
चलती हूँ....किसी भी राह...
ReplyDeleteतुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं...
....बहुत सुन्दर कोमल अहसास...
हमेशा की तरह बहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रेम ऐसा ही होता है . बहुत खूबसूरत भावमयी रचना ..बधाई
ReplyDeleteमन के अनकहे भावो को इस रचना में बहा दिया ..आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में मेरी नयी रचना Os ki boond: मन की बात ...
चाह क्या नहीं कर सकती ..
ReplyDeleteजब कभी कोई ख्वाब सजाती हूँ मैं....
ReplyDeleteखुद को ही नही उसमे पाती हूँ मैं....
कितना भी ले आऊं खुद को......तुमसे दूर...
हर बार खुद से ही हार जाती हूँ मैं....
चलती हूँ....किसी भी राह...
तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं.
गजब की कसक देती एहसास
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteभावभिनी रचना के लिये बधाई
ReplyDeleteकोमल अहसासयूक्त रचना..
ReplyDeleteभावपूर्ण...
बहुत सुन्दर मनभावन रचना ...
ReplyDelete:-)
Recent Post ... बड़ी बिल्डिंग के बड़े लोग :)
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
bahut pyari rachna...har rah ki manzil to tum ho....
ReplyDeleteवाह, सुन्दर रचना
ReplyDeleteBahut sundar, gehan evam samvedna liye rachna.
ReplyDelete-Shaifali
http://guptashaifali.blogspot.com
मोहब्बत के दौर से गुजरने वालों की वास्तविकता है ये।
ReplyDeleteअच्छे अल्फाज़
ehasaason ki paavan anubhooti hai tumhari yaaden.
ReplyDeleteuttam v bhavpoorn.
preeti yahi hai .
ReplyDeleteकोमल भावों से सजी रचना ....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteकोमल भावों से सजी रचना ....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteNostalgia .... it never ends !!!
ReplyDeletenice one.....