Thursday, 21 September 2017

मुझ तक पहुँच जाओगे...!!!

मैं आज किसी सुकून की तलाश में,
उन जगहों पर जा कर,
पहरों बिता आती हूँ,
जिस जगह तुम घंटो बैठा करते थे..
तुम्हारी खुशबू हर तरफ महसूस करती हूं,
ना जाने क्यों तुम्हारे ना होने में भी..
तुम्हारे होने का एहसास कराती है...
हर इक लम्हा जैसे तुम्हारी ही बाते करता हो,
मैं कहती कुछ नही,
फिर जैसे तुम मुझे सुन रहे होते हो....
बेवजह जो वक़्त गुजरता नही है...
इक तुम्हारे होने के एहसास के साथ,
पहरों गुजर जाते है...
शायद इस इंतजार में कि,
तुम भी कभी मुझे ढूंढते हुए...
मुझ तक पहुँच जाओगे...!!!

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-09-2017) को "अहसासों की शैतानियाँ" (चर्चा अंक 2736) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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