मैं ही नारी हूँ....
सदियों से मुझ पर बहुत कुछ
लिखा गया, पढ़ा गया....
कहने वालो को भी देखा है मैंने....
सुनने वालो को भी देखा है मैंने.....
सोच में हूँ..........
क्यों मुझे इतना समझने....
समझाने की जरुरत पड़ी है दुनिया को?
क्या मैं अबला हूँ?
क्या मैं मजबूर हूँ?
क्या मैं कमजोर हूँ?
या सिर्फ इसलिए कि.....मैं नारी हूँ....
मैं नही समझ पायी कभी कि,
मैं तो संसार के हर घर में जीतीजागती मौजूद हूँ......
फिर मुझे समझने के लिये लोग घर के बाहर
किताबो को क्यों पढ़ रहे है....?
क्या मैं सिर्फ पढने,लिखने-सुनने का ही
विषय बन कर रह गयी हूँ.....???????
मुझे महान देवी जैसी उपाधि देकर,
कुछ लोग एक दिन महिला दिवस तो मना लेते है,
पर घर में ही मौजूद नारी को ही भूल जाते है......
मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि "मैं भी नारी हूँ"
मुझे बड़े-बड़े सम्मान नही,
अपने परिवार का साथ और प्यार चहिये....
मुझे देवी माँ नही सिर्फ "माँ" ही बने रहने दो....
त्याग और समपर्ण सब मेरे कर्त्तव्य है...
इनके लिये कोई पुरूस्कार रहने दो.....
मैं क्या हूँ?
ये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है......
मुझे बड़े-बड़े सम्मान नही,
ReplyDeleteअपने परिवार का साथ और प्यार चहिये....
यकीनन
बहुत सुंदर ! बहार क्यों जाते ,पढते है लोग जबकि उनके अपने घर में भी है नारी ......क्या बात है ! साधुवाद |
ReplyDeleteकाश..यह बात सब समझ पाते
ReplyDeleteगहरे भाव।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
sateek bhavon se saji sunder rachna..
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार!
होलीकोत्सव की शुभकामनाएँ।
ये कही बाहर से नही समझना है...
ReplyDeleteहर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
बहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति .... !!
फक्र से बोलना है ... हम नारी-स्त्री-महिला-औरत-women हैं .... !!
sahi prashn....
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ।
ReplyDeleteप्यार मिले परिवार का, पुत्र-पिता पति साथ ।
देवी मुझको मत बना, झुका नहीं तू माथ ।
झुका नहीं तू माथ, झूठ आडम्बर छाये ।
कन्या-देवी पूज, जुल्म उनपर ही ढाये ।
दुग्ध-रक्त तन प्राण, निछावर सब कुछ करती ।
बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती ।।
दिनेश की टिप्पणी-आपकी पोस्ट का लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
नारी मन के भावों को लिखा है ... पुरुष समाज हमेशा से ही नारी को अबला बनाता आया है ... मार्मिक रचना ...
ReplyDeleteचाहे जिस रूप में नारी को देखा जाय हर रूप में वो एक मजबूत कड़ी है जो सारे रिश्तों को जोडती है , वो है तो रिश्ते बनते हैं न है तो नहीं |
ReplyDeleteमैं नही समझ पायी कभी कि,
ReplyDeleteमैं तो संसार के हर घर में जीतीजागती मौजूद हूँ......
फिर मुझे समझने के लिये लोग घर के बाहर
किताबो को क्यों पढ़ रहे है....?
क्या मैं सिर्फ पढने,लिखने-सुनने का ही
विषय बन कर रह गयी हूँ.....???????
बहुत गंभीर प्रश्न किया है ।
सादर
उम्दा एवं चिंतनीय प्रस्तुति !
ReplyDeletesundar...
ReplyDeletegahan sawaal hai ant mein...
मैं क्या हूँ?
ReplyDeleteये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है......bahot achchi lagi......
मैं क्या हूँ?
ReplyDeleteये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है......
नारी को घर से ही समझना होगा .... बहुत अच्छी प्रस्तुति
AAPAKI BATON SE SAHAMAT.MAA BAHAN BETI PATNI YE RISHTE GHAR ME HAIN.INHE HI SAMAGH LIYA JAYE BAS JIWAN ME AANAND
ReplyDeleteHI AANANAD HAI.
SUNDAR BHW SE SAJI RACHANA.PRABHASHALI.
aapki kavita vastavikata ka aaina hai
ReplyDeleteबहुत अच्छा मुद्दा है इस रचना में |होली पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteआशा
कल 05/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मैं क्या हूँ?
ReplyDeleteये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है......gr8
सटीक अभिव्यक्ति...नारी पढ़ने या सुनने के लिए नहीं...गुनने गुनने के लिय है...सहज शब्दों में गहन विचार...
ReplyDeleteक्यों मुझे इतना समझने....
ReplyDeleteसमझाने की जरुरत पड़ी है दुनिया को?
right......
मैं भी नारी हूँ ..नारी के नाम को सार्थक करती हुई एक बढ़िया रचना
ReplyDeleteJust one word... Awesome....
ReplyDeleteहोली की खुमार परवान चढ़े जीवनके सारे रंग अपने स्वरुप को सुघरता प्रदान करते हुए अनंत खुशियों को वरण करें ,होली की और सृजन की ह्रदय से बधाईयाँ जी /
ReplyDeletenari...ek vytha katha....hamesha se hi....rochak prastuti
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteहर बार नारी को ही प्रश्नचिन्ह से ही क्यूँ संबोधित किया जाता हैं ?
ReplyDeleteकविता का शब्द शब्द ...बोलता हुआ सा हैं ..
रंगों की बेला पर ...होली की शुभकामनयें
मुझे देवी माँ नही सिर्फ "माँ" ही बने रहने दो....
ReplyDeleteत्याग और समपर्ण सब मेरे कर्त्तव्य है...
इनके लिये कोई पुरूस्कार रहने दो.....
बहुत बहुत सुन्दर विचार....
वाह सुषमा जी.
शुभकामनाये...
होली और womens day की
मुझे देवी माँ नही सिर्फ "माँ" ही बने रहने दो...बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत लगी पोस्ट। बहुत ही सटीक और सुन्दर........हैट्स ऑफ इसके लिए.............. आपको होली की शुभकामनायें।
ReplyDeleteमैं क्या हूँ?
ReplyDeleteये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है.....
बहुत ही सार्थकता लिए सटीक लेखन ..
मैं क्या हूँ?
ReplyDeleteये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है......
.विह्वल करती रचना .होली मुबारक .
बहुत खूब ...
ReplyDeleteकुछ अलग हट के !
रंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !
SARTHAK PRASTUTI HETU BADHAI . ye hai mission london olympic
ReplyDeleteहर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
ReplyDeleteसिर्फ इतना समझना है......
सच कहा और दमदार तरीके से कहा ...बहुत बढ़िया
बहुत हि सुंदर एवं सार्थक लेखन हैं
ReplyDeleteगहरे भाव व्यक्त करती सुंदर रचना.....
शुष्मा जी : अंतिम की चार पंक्तियाँ की पुकार नारी के अस्तित्वा को समझने की गुहार मुझे अत्यंत प्यारी लगी.....
ReplyDelete" मैं क्या हूँ?
ये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है...... "
मैं क्या हूँ?
ReplyDeleteये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है..बहुत गहन भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति
bahut sundar
ReplyDeleteये कही बाहर से नही समझना है...
ReplyDeleteहर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ"..... very nice.
sach kaha aapne
ReplyDeleteसटीक....
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