Saturday 3 March 2012

मैं ही नारी हूँ......!!!

मैं ही नारी हूँ....                                                                   
सदियों से मुझ पर बहुत कुछ 
लिखा गया, पढ़ा गया....
कहने वालो को भी देखा है मैंने.... 
सुनने वालो को भी देखा है मैंने.....
सोच में हूँ..........
क्यों मुझे इतना समझने....
समझाने की जरुरत पड़ी है दुनिया को?

क्या मैं अबला हूँ?
क्या मैं मजबूर हूँ?
क्या मैं कमजोर हूँ?
या सिर्फ इसलिए कि.....मैं नारी हूँ....

मैं नही समझ पायी कभी कि,
मैं तो संसार के हर घर में जीतीजागती मौजूद हूँ......
फिर मुझे समझने के लिये लोग घर के बाहर
किताबो को क्यों पढ़ रहे है....?
क्या मैं सिर्फ पढने,लिखने-सुनने का ही 
विषय बन कर रह गयी हूँ.....???????

मुझे महान देवी जैसी उपाधि देकर,
कुछ लोग एक दिन महिला दिवस तो मना लेते है,
पर घर में ही मौजूद नारी को ही भूल जाते है......

मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि "मैं भी नारी हूँ"
मुझे बड़े-बड़े सम्मान नही,
अपने परिवार का साथ और प्यार चहिये....
मुझे देवी माँ नही सिर्फ "माँ" ही बने रहने दो....
त्याग और  समपर्ण सब मेरे कर्त्तव्य है...
इनके लिये कोई पुरूस्कार रहने दो.....

मैं क्या हूँ?
ये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ"..... 
सिर्फ इतना समझना है......



44 comments:

  1. मुझे बड़े-बड़े सम्मान नही,
    अपने परिवार का साथ और प्यार चहिये....
    यकीनन

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  2. बहुत सुंदर ! बहार क्यों जाते ,पढते है लोग जबकि उनके अपने घर में भी है नारी ......क्या बात है ! साधुवाद |

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  3. काश..यह बात सब समझ पाते

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  4. गहरे भाव।
    सुंदर रचना।

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  5. sateek bhavon se saji sunder rachna..

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    आपका बहुत-बहुत आभार!
    होलीकोत्सव की शुभकामनाएँ।

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  7. ये कही बाहर से नही समझना है...
    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
    बहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति .... !!
    फक्र से बोलना है ... हम नारी-स्त्री-महिला-औरत-women हैं .... !!

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  8. खूबसूरत प्रस्तुति ।

    प्यार मिले परिवार का, पुत्र-पिता पति साथ ।

    देवी मुझको मत बना, झुका नहीं तू माथ ।

    झुका नहीं तू माथ, झूठ आडम्बर छाये ।

    कन्या-देवी पूज, जुल्म उनपर ही ढाये ।

    दुग्ध-रक्त तन प्राण, निछावर सब कुछ करती ।

    बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती ।।



    दिनेश की टिप्पणी-आपकी पोस्ट का लिंक

    dineshkidillagi.blogspot.com

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  9. नारी मन के भावों को लिखा है ... पुरुष समाज हमेशा से ही नारी को अबला बनाता आया है ... मार्मिक रचना ...

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  10. चाहे जिस रूप में नारी को देखा जाय हर रूप में वो एक मजबूत कड़ी है जो सारे रिश्तों को जोडती है , वो है तो रिश्ते बनते हैं न है तो नहीं |

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  11. मैं नही समझ पायी कभी कि,
    मैं तो संसार के हर घर में जीतीजागती मौजूद हूँ......
    फिर मुझे समझने के लिये लोग घर के बाहर
    किताबो को क्यों पढ़ रहे है....?
    क्या मैं सिर्फ पढने,लिखने-सुनने का ही
    विषय बन कर रह गयी हूँ.....???????

    बहुत गंभीर प्रश्न किया है ।

    सादर

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  12. उम्दा एवं चिंतनीय प्रस्तुति !

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  13. sundar...
    gahan sawaal hai ant mein...

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  14. मैं क्या हूँ?
    ये कही बाहर से नही समझना है...
    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
    सिर्फ इतना समझना है......bahot achchi lagi......

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  15. मैं क्या हूँ?
    ये कही बाहर से नही समझना है...
    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
    सिर्फ इतना समझना है......

    नारी को घर से ही समझना होगा .... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  16. AAPAKI BATON SE SAHAMAT.MAA BAHAN BETI PATNI YE RISHTE GHAR ME HAIN.INHE HI SAMAGH LIYA JAYE BAS JIWAN ME AANAND
    HI AANANAD HAI.
    SUNDAR BHW SE SAJI RACHANA.PRABHASHALI.

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  17. aapki kavita vastavikata ka aaina hai

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  18. बहुत अच्छा मुद्दा है इस रचना में |होली पर हार्दिक शुभ कामनाएं |

    आशा

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  19. कल 05/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  20. मैं क्या हूँ?
    ये कही बाहर से नही समझना है...
    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
    सिर्फ इतना समझना है......gr8

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  21. सटीक अभिव्यक्ति...नारी पढ़ने या सुनने के लिए नहीं...गुनने गुनने के लिय है...सहज शब्दों में गहन विचार...

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  22. क्यों मुझे इतना समझने....
    समझाने की जरुरत पड़ी है दुनिया को?
    right......

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  23. मैं भी नारी हूँ ..नारी के नाम को सार्थक करती हुई एक बढ़िया रचना

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  24. होली की खुमार परवान चढ़े जीवनके सारे रंग अपने स्वरुप को सुघरता प्रदान करते हुए अनंत खुशियों को वरण करें ,होली की और सृजन की ह्रदय से बधाईयाँ जी /

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  25. nari...ek vytha katha....hamesha se hi....rochak prastuti

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  26. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  27. हर बार नारी को ही प्रश्नचिन्ह से ही क्यूँ संबोधित किया जाता हैं ?
    कविता का शब्द शब्द ...बोलता हुआ सा हैं ..


    रंगों की बेला पर ...होली की शुभकामनयें

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  28. मुझे देवी माँ नही सिर्फ "माँ" ही बने रहने दो....
    त्याग और समपर्ण सब मेरे कर्त्तव्य है...
    इनके लिये कोई पुरूस्कार रहने दो.....

    बहुत बहुत सुन्दर विचार....
    वाह सुषमा जी.
    शुभकामनाये...
    होली और womens day की

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  29. मुझे देवी माँ नही सिर्फ "माँ" ही बने रहने दो...बहुत सुन्दर !

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  30. बहुत खुबसूरत लगी पोस्ट। बहुत ही सटीक और सुन्दर........हैट्स ऑफ इसके लिए.............. आपको होली की शुभकामनायें।

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  31. मैं क्या हूँ?
    ये कही बाहर से नही समझना है...
    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
    सिर्फ इतना समझना है.....
    बहुत ही सार्थकता लिए सटीक लेखन ..

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  32. मैं क्या हूँ?
    ये कही बाहर से नही समझना है...
    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
    सिर्फ इतना समझना है......
    .विह्वल करती रचना .होली मुबारक .

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  33. बहुत खूब ...
    कुछ अलग हट के !
    रंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !

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  34. हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
    सिर्फ इतना समझना है......

    सच कहा और दमदार तरीके से कहा ...बहुत बढ़िया

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  35. बहुत हि सुंदर एवं सार्थक लेखन हैं
    गहरे भाव व्यक्त करती सुंदर रचना.....

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  36. शुष्मा जी : अंतिम की चार पंक्तियाँ की पुकार नारी के अस्तित्वा को समझने की गुहार मुझे अत्यंत प्यारी लगी.....


    " मैं क्या हूँ?

    ये कही बाहर से नही समझना है...

    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....

    सिर्फ इतना समझना है...... "

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  37. मैं क्या हूँ?
    ये कही बाहर से नही समझना है...
    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
    सिर्फ इतना समझना है..बहुत गहन भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति

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  38. ये कही बाहर से नही समझना है...
    हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ"..... very nice.

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