यूँ ही इक दिन खिड़की से जाने किसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही......
ख्यालो में खोई थी या,
खुद के अन्दर उठे सवालों में उलझी थी
मन आवाज़ दे रहा था,
पर मौन खड़ी अपलक खिड़की से उसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....
मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
शायद मुझे छोड़ कर
रूठ गयी थी मैं खुद से...
मैं रोक लेना चाहती थी,
मना लेना चाहती थी खुद को,
जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....
कुछ सवाल थे उसके,
जिनके जवाब मैं नही दे पायी थी
मैं क्यों रोकना चाहती हूँ उसको
मैं नही कह पायी थी...
मेरी हर कोशिश नाकाम हो गयी......!!!
यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....
रूठ गई थी में खुद से ....मन लेना चाहती थी ..........वाह बहुत सुंदर भाव सुषमा जी |
ReplyDeleteमेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
ReplyDeleteशायद मुझे छोड़ कर
रूठ गयी थी मैं खुद से...
मैं रोक लेना चाहती थी,
मना लेना चाहती थी खुद को,
जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही....साया मेरा ही था दूर जाता , मैं निमित्त मात्र थी या वह , जाने कितना कुछ कह गया
अविस्मरनीय !!!
ReplyDeleteकुछ इसी तरह की एक कविता हमने भी लिखने का प्रयास किया है
कृपया टिपण्णी करें!!!
http://relyrics.blogspot.in/2011/10/section-d.html
मन की उथल पुथल को सार्थक शब्द दिये हैं
ReplyDeleteमेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
ReplyDeleteशायद मुझे छोड़ कर
rachna ki ye panktiyan dil ko chu gayi
bhtrin lekhn ke liyen badhaai .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteसुन्दर भावनाभिव्यक्ति ... सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteसवालों का जवाब ना दे सके रोकना नहीं होता , उदास निगाहें सिर्फ पीछा करती रह जाती हैं ...
ReplyDeleteबढ़िया !
कुछ चीज़े ऐसे ही ही आँखों के सामने से चली जाती हैं और हम सिर्फ देखते ही रह जाते है.......बहुत सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteमौन खड़ी अपलक खिड़की से उसे जाते,
ReplyDeleteदेर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....very nice....
खुद से दूर जाना और बस उसे देखते रहना...बहुत सुंदर अहसास !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
bhavpoorn sundar rachna...
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
सुन्दर अभिव्यक्ति। हम कई बार ऐसे ही खिड़की से खड़े रहकर किसी को जाते हुए देखने पर मजबूर होते हैं। क्या किया जाए?
ReplyDeletebahut khub ...
ReplyDeleteyadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen
ReplyDeleteकभी कभी हम खुद को ही भूल जातें हैं और ज़िन्दगी में उलझे रहते हैं!! जब खुद की याद आती हैं तो पता चलता हैं कि खुद से बहुत दूर आ गए हैं!!
ReplyDeletejab kah naa paayaa man dil kee baat
ReplyDeletephir kyon ab udaas ?
bahut sundar abhivyakti
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहार्दिक बधाईयां..
वाह!! एक भावपूर्ण सुन्दर रचना...
ReplyDeleteकभी कभी सबकुछ अमर वश में नही होता.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
ReplyDeleteशायद मुझे छोड़ कर
मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
ReplyDeleteशायद मुझे छोड़ कर
वाह!!!!अति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना...
ReplyDeleteमै कई बार आपके पोस्ट गया,किन्तु आप एक भी बार मेरे
पोस्ट पर नही आई,..आइये आपका स्वागत है,..
समर्थक बन रहा हूँ आपभी बने मुझे खुशी होगी,...आभार
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
कुछ सवाल थे उसके,
ReplyDeleteजिनके जवाब मैं नही दे पायी थी
मैं क्यों रोकना चाहती हूँ उसको
मैं नही कह पायी थी...
मेरी हर कोशिश नाकाम हो गयी......!!!
प्रेम भी तो इक कसमकश का ही नाम है। दिल को छूती प्रस्तुति।
कुछ सवाल थे उसके,
ReplyDeleteजिनके जवाब मैं नही दे पायी थी
मैं क्यों रोकना चाहती हूँ उसको
मैं नही कह पायी थी...
मेरी हर कोशिश नाकाम हो गयी......!!kuch saval kbhi kbhi ansuljhe hi rh jate hain ...very nice.
यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
ReplyDeleteदेर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....
SPEECHLESS LINES EXPRESSION THROUGH EYE.
NICE THOUGHTFUL.THANKS.
मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
ReplyDeleteशायद मुझे छोड़ कर
रूठ गयी थी मैं खुद से...
मैं रोक लेना चाहती थी,
मना लेना चाहती थी खुद को,
जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,..
मन अचानक ही कभी कभी उदासी से भर जाता है ... दिल का कोना रीता हो जाता है ... किसी से अलग होना आसान नहीं होता ...
मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
ReplyDeleteशायद मुझे छोड़ कर
रूठ गयी थी मैं खुद से...
मैं रोक लेना चाहती थी,
मना लेना चाहती थी खुद को,
जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....
...बहुत ह्रदयस्पर्शी भाव...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
bahut hi pyaari rachna
ReplyDeleteyu hi ....ye bhi hona chahiye na .behad khoobsurat..
ReplyDeleteख़ुद से रूठ जाना शायद सबसे गहरी पीड़ा दायक स्थिति है. कविता अच्छी लगी.
ReplyDeleteखुद को पहचान लेना और उसके अनुरूप कार्य करना निश्चित रूप से कठिन कृत्य है..... जो ऐसा कर सके वो श्रेष्ठ है........
ReplyDeleteह्रदय की उहापोह की गहरी अभिव्यक्ति....
ReplyDeletekabhi kabhi aisa hi hota hai....jo kahna hota hai hum vo kah nhi paate..sundar rachna
ReplyDeleteह्रदयस्पर्शी भाव.....सुंदर प्रस्तुति!!!
Deleteबहूत हि बेहतरीन भावपूर्ण रचना है
ReplyDeleteबहूत हि सुंदर सारगर्भित रचना
बहुत खूबसूरत रचना..
ReplyDeleteबधाई.
यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
ReplyDeleteदेर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.
सहज, सरल शब्दों के प्रयोग से सुंदर भावाभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
"AAJ KA AGRA BLOG"
यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
ReplyDeleteदेर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....
bahut prabhavshali abhivyakti .....badhai sweekaren
बेहतरीन...भावपूर्ण..
ReplyDeleteवाह वाह ..बहुत सुंदर प्रस्तुति ...बधाई ;)
ReplyDeletebhavo se bhari bahut umda rachna .badhai
ReplyDeletebhavpurn....
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ...बधाई
ReplyDeleteमेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
ReplyDeleteशायद मुझे छोड़ कर
रूठ गयी थी मैं खुद से...
मैं रोक लेना चाहती थी,
स्वयं से शिकायत...अलगाव ...एक नई सी सोच.....सुन्दर!
bhav purn... khubsurat.. shandaar:)
ReplyDeletekya baat hai, bahut gahre bhaaw hai
ReplyDeleteमर्म स्पर्शी कविता ।,...॥उत्कृष्ट कृति ..
ReplyDeleteसाभार -नवीन सोलंकी