Friday 24 February 2012

देर तक देखती रही...दूर तक देखती रही.....!!!

यूँ ही इक दिन खिड़की से जाने किसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही......


ख्यालो में खोई थी या,
खुद के अन्दर उठे सवालों में उलझी थी
मन आवाज़ दे रहा था,
पर मौन खड़ी अपलक खिड़की से उसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....

मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
शायद मुझे छोड़ कर
रूठ गयी थी मैं खुद से...
मैं रोक लेना चाहती थी,
मना लेना चाहती थी खुद को,
जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....

कुछ सवाल थे उसके,
जिनके जवाब मैं नही दे पायी थी
मैं क्यों रोकना चाहती हूँ उसको 
मैं नही कह पायी थी...
मेरी हर कोशिश नाकाम हो गयी......!!!
यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....

51 comments:

  1. रूठ गई थी में खुद से ....मन लेना चाहती थी ..........वाह बहुत सुंदर भाव सुषमा जी |

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  2. मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
    शायद मुझे छोड़ कर
    रूठ गयी थी मैं खुद से...
    मैं रोक लेना चाहती थी,
    मना लेना चाहती थी खुद को,
    जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,
    देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही....साया मेरा ही था दूर जाता , मैं निमित्त मात्र थी या वह , जाने कितना कुछ कह गया

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  3. अविस्मरनीय !!!

    कुछ इसी तरह की एक कविता हमने भी लिखने का प्रयास किया है

    कृपया टिपण्णी करें!!!

    http://relyrics.blogspot.in/2011/10/section-d.html

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  4. मन की उथल पुथल को सार्थक शब्द दिये हैं

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  5. मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
    शायद मुझे छोड़ कर
    rachna ki ye panktiyan dil ko chu gayi

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  6. bhtrin lekhn ke liyen badhaai .akhtar khan akela kota rajsthan

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  7. सुन्दर भावनाभिव्यक्ति ... सुन्दर पोस्ट

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  8. सवालों का जवाब ना दे सके रोकना नहीं होता , उदास निगाहें सिर्फ पीछा करती रह जाती हैं ...
    बढ़िया !

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  9. कुछ चीज़े ऐसे ही ही आँखों के सामने से चली जाती हैं और हम सिर्फ देखते ही रह जाते है.......बहुत सुन्दर पोस्ट।

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  10. मौन खड़ी अपलक खिड़की से उसे जाते,
    देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....very nice....

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  11. खुद से दूर जाना और बस उसे देखते रहना...बहुत सुंदर अहसास !

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  12. बहुत ही बढ़िया

    सादर

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  13. गहरी अभिव्‍यक्ति।
    सुंदर रचना।

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  14. सुन्दर अभिव्यक्ति। हम कई बार ऐसे ही खिड़की से खड़े रहकर किसी को जाते हुए देखने पर मजबूर होते हैं। क्या किया जाए?

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  15. yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen

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  16. कभी कभी हम खुद को ही भूल जातें हैं और ज़िन्दगी में उलझे रहते हैं!! जब खुद की याद आती हैं तो पता चलता हैं कि खुद से बहुत दूर आ गए हैं!!

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  17. jab kah naa paayaa man dil kee baat
    phir kyon ab udaas ?

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  18. सुन्दर अभिव्यक्ति...
    हार्दिक बधाईयां..

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  19. वाह!! एक भावपूर्ण सुन्दर रचना...

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  20. कभी कभी सबकुछ अमर वश में नही होता.

    सुंदर रचना.

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  21. मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
    शायद मुझे छोड़ कर

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  22. मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
    शायद मुझे छोड़ कर

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  23. वाह!!!!अति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना...
    मै कई बार आपके पोस्ट गया,किन्तु आप एक भी बार मेरे
    पोस्ट पर नही आई,..आइये आपका स्वागत है,..
    समर्थक बन रहा हूँ आपभी बने मुझे खुशी होगी,...आभार


    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

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  24. कुछ सवाल थे उसके,
    जिनके जवाब मैं नही दे पायी थी
    मैं क्यों रोकना चाहती हूँ उसको
    मैं नही कह पायी थी...
    मेरी हर कोशिश नाकाम हो गयी......!!!

    प्रेम भी तो इक कसमकश का ही नाम है। दिल को छूती प्रस्तुति।

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  25. कुछ सवाल थे उसके,
    जिनके जवाब मैं नही दे पायी थी
    मैं क्यों रोकना चाहती हूँ उसको
    मैं नही कह पायी थी...
    मेरी हर कोशिश नाकाम हो गयी......!!kuch saval kbhi kbhi ansuljhe hi rh jate hain ...very nice.

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  26. यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
    देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....
    SPEECHLESS LINES EXPRESSION THROUGH EYE.
    NICE THOUGHTFUL.THANKS.

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  27. मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
    शायद मुझे छोड़ कर
    रूठ गयी थी मैं खुद से...
    मैं रोक लेना चाहती थी,
    मना लेना चाहती थी खुद को,
    जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,..

    मन अचानक ही कभी कभी उदासी से भर जाता है ... दिल का कोना रीता हो जाता है ... किसी से अलग होना आसान नहीं होता ...

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  28. मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
    शायद मुझे छोड़ कर
    रूठ गयी थी मैं खुद से...
    मैं रोक लेना चाहती थी,
    मना लेना चाहती थी खुद को,
    जाने किस कशमकश में खड़ी उसे जाते,
    देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....

    ...बहुत ह्रदयस्पर्शी भाव...बहुत सुंदर प्रस्तुति..

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  29. yu hi ....ye bhi hona chahiye na .behad khoobsurat..

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  30. ख़ुद से रूठ जाना शायद सबसे गहरी पीड़ा दायक स्थिति है. कविता अच्छी लगी.

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  31. खुद को पहचान लेना और उसके अनुरूप कार्य करना निश्चित रूप से कठिन कृत्य है..... जो ऐसा कर सके वो श्रेष्ठ है........

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  32. ह्रदय की उहापोह की गहरी अभिव्यक्ति....

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  33. kabhi kabhi aisa hi hota hai....jo kahna hota hai hum vo kah nhi paate..sundar rachna

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    1. ह्रदयस्पर्शी भाव.....सुंदर प्रस्तुति!!!

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  34. बहूत हि बेहतरीन भावपूर्ण रचना है
    बहूत हि सुंदर सारगर्भित रचना

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  35. बहुत खूबसूरत रचना..
    बधाई.

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  36. यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
    देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.

    सहज, सरल शब्दों के प्रयोग से सुंदर भावाभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    "AAJ KA AGRA BLOG"

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  37. यूँ ही इक दिन खिड़की से उसे जाते
    देर तक देखती रही....दूर तक देखती रही.....

    bahut prabhavshali abhivyakti .....badhai sweekaren

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  38. बेहतरीन...भावपूर्ण..

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  39. वाह वाह ..बहुत सुंदर प्रस्तुति ...बधाई ;)

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  40. bhavo se bhari bahut umda rachna .badhai

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  41. बहुत सुंदर प्रस्तुति ...बधाई

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  42. मेरे अन्दर से कुछ जा रहा था,
    शायद मुझे छोड़ कर
    रूठ गयी थी मैं खुद से...
    मैं रोक लेना चाहती थी,

    स्वयं से शिकायत...अलगाव ...एक नई सी सोच.....सुन्दर!

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  43. kya baat hai, bahut gahre bhaaw hai

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  44. मर्म स्पर्शी कविता ।,...॥उत्कृष्ट कृति ..


    साभार -नवीन सोलंकी

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