जब मैं नही समझती थी,
जिंदगी के मायने तब ही अच्छी थी
ख्वाबो में जिया करती थी,
ख्यालो में खुश रहा करती थी...
खुश थी कुछ न जान कर,
अंजान थी जिंदगी की हकीकत से,
आज जब जिंदगी ने मेरा हाथ पकड़ कर,
तब न किसी से उम्मीदे थी,
आज पूछती हूँ मैं खुद से कि,
तब ही अच्छी थी ....
तब न राहो की,न मंजिलो की कमी थी,
जिंदगी का हाथ पकड़ कर
ख्वाबो में चला करती थी...
ख्यालो में खुश रहा करती थी...
आज जब जिंदगी ने मेरा हाथ पकड़ कर,
हकीकत से मिलाया है
मैंने हर सच्चाई को झूठा पाया है ....
जब मैं अंजान थी,
मैंने हर सच्चाई को झूठा पाया है ....
जब मैं अंजान थी,
इस हकीकत से तब ही अच्छी थी
ख्यालो में खुश रहा करती थी.....
तब न किसी से उम्मीदे थी,
न कुछ खोने का डर था
खुद में सिमटी,खुद में खोई थी...
खुद में सिमटी,खुद में खोई थी...
अकेली थी पर इतनी न अकेली थी ..
आज पूछती हूँ मैं खुद से कि,
मैं ऐसी तो नही थी....
खुश थी जब मैं कुछ नही समझती थी......
ख्यालो में खुश रहा करती थी.....
1st to read or perhaps 1st to comment.. Thanx for giving me this honour... Most of ur poems are quiet touchy.. poems ko padne me to vakt ni lagta par.. Par dilo dimag me ghanto.. Dino tak gunjti rehti hain.. Jaise bhale kuch minton ki ho.. Pero k patto se pani tapakta rehta h.. Ghaso ki nami barkarar rehti hai aur mitti ki sondhi khusboo dil ko mehkati rehti hai.. Aisi hoti hain aapki kavitayen...
ReplyDeletezindgee kee haqeeqat kabhee
ReplyDeletechuup nahee saktee
khwaabon kee duniyaa se alag hotee
kabhee naa kabhee pataa chaltee
wah bahut khub...
ReplyDeleteIGNORANCE IS BLISS
ReplyDeletebahut sunder bhav hai ,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteमैं खुश थी...मैं खुश थी जब मैं बच्ची थी....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव...
आज जब जिंदगी ने मेरा हाथ पकड़ कर,
ReplyDeleteहकीकत से मिलाया है
मैंने हर सच्चाई को झूठा पाया है ....
जब मैं अंजान थी,
इस हकीकत से तब ही अच्छी थी
ख्यालो में खुश रहा करती थी.....
व्यक्ति कभी हकीकत जानकार खुश रहता है , और कभी बिना हकीकत को जाने उसे ख़ुशी होती है .....! यह जीवन है ही ऐसा है .....!
जब मैं नही समझती थी,
ReplyDeleteजिंदगी के मायने तब ही अच्छी थी
ख्वाबो में जिया करती थी,
ख्यालो में खुश रहा करती थी...
Sundar rachna....
मन की गहरी टीस झलक रही है इस कविता से।
ReplyDeleteसादर
हाँ ... पर इस समझ की दौर से गुजरना ही होता है
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही खूबसूरती से लिखा है..या कहूँ तो बिलकुल सच ही लिखा है.
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteखुश थी जब मैं कुछ नही समझती थी......
ReplyDeleteख्यालो में खुश रहा करती थी.....
कभी अनजान रहने में भी समझदारी होती है.
ehsaaso ko badi karigari se shabdo me piroya hai, bahut sundar hai....
ReplyDeleteकब तक अनजान रहा जा सकता है.. बहुत प्यारे अहसास और उनकी सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeletesunder abhivykti .
ReplyDeleteलाज़व्वाब ,... सुदर पोस्ट है , सुषमा जी॥ ॥
ReplyDeleteबचपन,न समझने का ही दूसरा नाम है मेरे भी ब्लॉग पर आयें
खुश थी जब मैं कुछ नही समझती थी......
ReplyDeleteख्यालो में खुश रहा करती थी.....
तब न किसी से उम्मीदे थी,
न कुछ खोने का डर था
खुद में सिमटी,खुद में खोई थी...
अकेली थी पर इतनी न अकेली थी . bahut hi sundar...
आज जब जिंदगी ने मेरा हाथ पकड़ कर,
ReplyDeleteहकीकत से मिलाया है
मैंने हर सच्चाई को झूठा पाया है ....
शायद यही है जिंदगी
जिंदगी की सच्चाई बताती है आपकी यह रचना .
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया प्रस्तुति...
:-)
bhaav poorn rachana ko mera salam.
ReplyDeleteआज पूछती हूँ मैं खुद से कि,
ReplyDeleteमैं ऐसी तो नही थी....
खुश थी जब मैं कुछ नही समझती थी...waah sbke dil ki baaten.
आज जब जिंदगी ने मेरा हाथ पकड़ कर,
ReplyDeleteहकीकत से मिलाया है
मैंने हर सच्चाई को झूठा पाया है ...........
bahut acchi lagi aapki rachna.....bilkul aapki tarah.....
ReplyDeleteसोलह आने सच है जब हम जिंदगी के मायने नहीं समझते तब खुश रहते हैं। वैसे समझने के बाद भी खुशी के रास्ते तो ढूंढ़े ही जा सकते हैं।
ReplyDeletegreat :)
ReplyDeleteकाश: ये ही सच रहता .....
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
ignorance is bliss...और जिंदगी वैसे भी एक ख्वाब से कम नहीं...ज्यादा सोचने समझने की गुंजाईश नहीं है...
ReplyDeleteमैं खुश थी जब मैं बच्ची थी....बहुत भावमयी अभिव्यक्ति... आप को महा शिव रात्रि पर हार्दिक बधाई..
ReplyDeleteबहुत सुंदर ढंग से मन की बात प्रस्तुत की है...!
ReplyDeleteहकीकत से दो चार होना ही पड़ता है..सुंदर रचना!
ReplyDeleteजिंदगी की कड़वी हकीकत जान के सुखी रहना आसान तो नहीं ... पर जो खुश रहता है वो ही जीवन जीता है ...
ReplyDeleteवो बचपन के दिन किसी जन्नत से कम नहीं थे,
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
वो मेरे बचपन के दिन थे जब चाँद में परियां रहती थी ।
ReplyDeleteख्यालों में ही खुशी बसती है । हकीकत तो कठोर धूप की तरह है ।
ReplyDeleteजीवन की यह विडंबना हर एक के हिस्से में आती है ....और एक कटु वास्तविकता से परिचय करा जाती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना :)
ReplyDeleteख्यालों कि दुनियां सच में बहुत खूबसूरत होती है ,
पर हकीकत से ये बहुत दूर रहा करती है |
प्रिय सुषमा आहुति जी --खूबसूरत अहसास ..हकीकत होती ही ऐसी है ...सटीक अभिव्यक्ति वक्त का ...बचपन याद दिला जाती है काश वो दिन फिर लौट आये
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर५
sushma jee aapke blog par pahli baar aana hua aur bahut hi sundar rachna mili
ReplyDeleteआज जब जिंदगी ने मेरा हाथ पकड़ कर,
ReplyDeleteहकीकत से मिलाया है
मैंने हर सच्चाई को झूठा पाया है ....
जब मैं अंजान थी,
इस हकीकत से तब ही अच्छी थी
ख्यालो में खुश रहा करती थी.....
अंजान रहते तक ही सुख हैं.सुंदर रचना.
एक स्वाभाविक रचना ....
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