Tuesday, 2 February 2016

Valentine day खतो की डायरी...,

तुम्हारे ख़तो के सिलसिलों ने जैसे,
इक एहसासों दे बांध दिया था,
हर रोज तुम्हारा ख़तो का सिलसिला,
मेरी सांसो के चलने का सबब बनता जा रहा है...
जब तक तुम्हारा खत न पढ़ लूँ...
कुछ अधूरा सा लगता है....
मेरी साँसों को तुम्हारी साँसे बनकर,
तुम्हारा खत मिला..
मेरी हीर,
जिंदगी तो मैं पहले भी जी रहा था,ये मौसम,ये हवा,ये फ़ूलो के रंग, ये शाम, ये रात सभी वही है पहले जैसी...फर्क सिर्फ इतना है कि पहले इन सभी को देख कर मैं यूँ  ही गुजर जाता था..अब ना जाने क्यों मुस्करा कर ठहर जाता हूँ....क्यों की अब हर शै में तुम्हारा एहसास महसूस करता हूँ....मैं सोचता हूँ कि अगर तुम मुझे ना मिलती तो शायद मैं जिंदगी की खूबसूरती कभी समझ ही नही पाता....सच कह रहा हूँ..,कि जिंदगी तो मैं पहले भी जी रहा था,पर तुमसे मिलकर जैसे जिंदगी  मुझे जीने लगी.....
                                             तुम्हारा
                                               राँझा

5 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2242 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार

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  3. हर रोज़ एक ख़त का सिलसिला ... अच्छी शुरुआत है ...

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