जब भी तुम्हारा खत मिलता था,
तो यूँ लगता की जैसे इस खत,
मेरे दिल का कोई राज छुपा हो,
मैं जैसे हर वो बात तुमसे,
सुनना चाहती थी...जो कभी,
मैं तुमसे कहना चाहती थी..
आज भी ये खत...
मेरी डायरी दे बाहर,
खुद-बखुद आ जाते है..
मैं लाख नजरें बचा कर इन्हें,
फिर डायरी में कही छिपा दूँ...
पर इक बैचैनी सी बढ़ा देते है...तुम्हारे शब्द......
मेरी हीर,
तुम्हारी उंगलियो की छुअन का वो एहसास आज भी मेरी उंगलियों को है.....आज जब तुम्हे लिखते-लिखते मेरी उंगलियां ठहरती है,तो आपस में उलझ जाती है..इस सोच में कि किस तरह से मेरी उंगलियां तुम्हारी तुम्हारी उंगलियों से जुदा हुई थी...इस बार जब मिलना तो अपनी उंगलियों को मेरी उंगलियों से उलझा कर मेरी उँगलियों की उलझन सुलझा देना....
तुम्हारा
राँझा
Sunday, 7 February 2016
Valentine day खतो की डायरी...!!!
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-02-2016) को "नुक्कड़ अनाथ हो गया-अविनाश वाचस्पति को विनम्र श्रद्धांजलि" (चर्चा अंक-2247) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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चर्चा मंच परिवार की ओर से अविनाश वाचस्पति को भावभीनी श्रद्धांजलि।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'