Monday 7 November 2016

मैं सिर्फ तुमको ही लिखती रहूँ....!!!

मैं ना मंच से तुम्हे गाना चाहूं,
मैं तो तुम्हारे होठो पर गुनगुना चाहूं....
मैं ना किसी अखबार की,
सुर्खियां बनना चाहूं,...
मैं तो तुम्हारे ह्रदय पर रचना चाहूं...
मैं ना किसी किताब में,
प्रकाशित होना चाहूं,
मैं तो तुम्हारे अंतर्मन में अनकही,
अलिखित,अप्रकाशित,
पंक्तियों सी रहना चाहूं...
मैं ना अब किसी का ख्वाब बनना चाहूं,
बस तुम्हारे ख्वाबो में रहना चाहूं....
मैं ना अब कोई और,
इबादत करना चाहूं....
मैं तो तुम्हारे सजदे में ही सर झुकाना चाहूं...
मैं ना अब कोई राज,
बन कर रहना चाहूं....
मैं तो खुली किताब बन कर,
तुम्हारे हाथो में बिखरना चाहूं....
सौं बातो की..
इक बात मैं कहना चाहूं,
सिर्फ तुम ही मुझे पढ़ते रहो,और
मैं सिर्फ तुमको ही लिखती रहूँ....!!!

3 comments:

  1. मैं तो खुली किताब बन कर,
    तुम्हारे हाथो में बिखरना चाहूं....

    बहुत सुंदर पंक्तिया

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  2. सौं बातो की..
    इक बात मैं कहना चाहूं,
    सिर्फ तुम ही मुझे पढ़ते रहो,और
    मैं सिर्फ तुमको ही लिखती रहूँ....!!
    .. . एक दूजे के लिए' ....
    बहुत सुन्दर ..

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  3. बहुत सुन्दर

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