Sunday 1 January 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-31

281.
नही याद की उसके साथ पी थी,
चाय और कॉफ़ी का स्वाद क्या था...
सिर्फ ये याद रह गया....
कि उस शख्स की आखों में क्या-क्या था..

282.
मैं चाहती हूँ इक चांदनी रात,
जो सिर्फ मेरी और तुम्हारी हो...
हो चांदनी कुछ नाराज चाँद से,
उस रात चांदनी सिर्फ हमारी हो.....

283.
कितना कुछ हो जाता है,दुनिया में यूँ ही बेवजह....
फिर तुम्हे मेरा बनने में क्यों चाइये कोई वजह...

284.
कितना इतराते हो,
तुम मेरी रचनाओं को पढ़ कर,
इस एहसास से की,
मेरे सारे शब्द सिर्फ तुम्हारे है...
तब मैं भी थोड़ा इतरा लेती हूँ,
तुमको अपने शब्दों में गढ़ कर,.....

285.
ढलती शामे,चाँद,तारे,राते,चाँदनी..
साँसे,अहसास,दिल,धड़कन...
सौं बातों का इक ही मतलब ...
सिर्फ तुम...और तुम ही तुम..

286.
तुम्हारी आँखों की बाते,
तुमसे ही कह देती हूँ...
तुम हँस कर पढ़ कर लेते हो,
मैं मुस्करा कर तमको ही लिख देती हूँ...

287.
तेरी बातो से मेरी..
हर इक रचना रच जाती है...
कविता तो मैं लिखती हूँ...
कविता जैसी बाते..
तुमको आती है..

288.
इक पूरी जिंदगी गुजार दी हमने,
इक अच्छी जिंदगी,
जीने की तैयारी में......

289.
रात भर दिये की रौशनी लिये,
तुम्हारी राहो में तुम्हारी राह तकती रही...
ना दिये को बुझने दिया,
बाती संग मैं भी जलती रही...

290.
इक लम्हा तेरी नजरो में मैं ठहर जाऊं,
इक लम्हा मेरी साँसों से गुजर जाये....
बस इन्ही दो लम्हो में,
हमारी जिंदगी गुजर जाये...

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