Sunday 1 January 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-32

291.
फिर इक बार.....
मैं शब्दों को गढ़ लूँ,
कि शब्द अब मिलते नही मुझे...
तुम जो पढ़ लो इक बार,
तो....मैं फिर कविता बन जाऊं..

292.
मुझे सुकून है कि,
मैंने हर मुमकिन कोशिश की,
तुम्हे रोकने की....
तुम पछताओगे कि,
तुम ठहरे क्यों नही...

293.
तुम क्या समझोगे प्यार क्या होता है,
जहां दिल की चलती है,
वहां तुम दिमाग चलाते हो...

294.
मैं तो हर दिन तुम्हारे लिये,
करवाचौथ रहती आई हूँ...
सुना है उम्र बढती है...
इसके व्रत रखने से...
मैं तो हर पल अपनी साँसों क,
तुम्हारी सांसो से जोडती आयी हूँ...
अब भी क्या कोई रस्म,
अदा करनी पड़ेगी..........!

295.
मेरा तुम्हारे साथ होना मेरी मर्जी है,
गर तुमने मेरी मज़बूरी समझ लिया
ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी है....

296.
अपना धड़कता दिल,
तुम्हारे सीने में,
छोड़ आयी हूँ...
तुम्हारे होटों पर निशानी अपनी,
मुस्कराहटो की छोड़ आयी हूँ...
सभी पढ़ लेंगे अब तुम्हारी आखों में...
कहानी अपनी उनमे छोड़ आयी हूँ....

297.
कभी मैं प्यार के लिये,
लिखा करती थी,
अब लिखने के लिये,
प्यार लिखती हूँ...

298.
इक शाम मेरी धड़कनो की,
तुम्हारी धड़कनो से बात हो...
ना लबों को हो इजाज़त,
कुछ कहने की..
सिर्फ इशारो में...
जाहिर जज्बात हो..
बस यूँ ही....इक शाम..
तुम्हारे साथ हो..

299.
किसी का साथ पसंद है तो फिर,
ये नही देखा जाता की साथ कितनी देर का है.....
देखा तो बस इतना जाता है,
की दो पल भी अगर साथ है....
तो मुकम्मल साथ रहे......!!

No comments:

Post a Comment