Tuesday, 27 September 2016

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-28

251.
तुम नजरो से कह देती,मैं नजरो से सुन लेता...
तुम ख्वाबो में जो आ जाती, तो मैं भी अपनी आँखों में कुछ सपने बुन लेता...
252.
कभी तुम्हारी नजरे हमसे सब कुछ कह देती थी,
आज तुम्हारी बाते भी मेरी समझ में नही आती..
कभी पहरों इन्तजार करती थी,
आँखे,आज तुम्हे देखना भी नही चाहती...
253.
वो आँखों-आँखों में बातो को कह जाना,
वो बातो-बातो में उंगलियों का टकरा जाना...
पहले से ही सब तय होता है...
यूँ ही नही होता बार-बार,
इत्तफाकन मिल जाना....
254.
हमारी जिंदगी हम पर ही बोझ तब हो जाती है,
जब हम किसी इक शख्स को अपनी जिंदगी मान लेते है...
और उस शख्स के लिए हम...
महज उसकी जिंदगी का हिस्सा होते है....
255.
जब तुम प्यार को समझना तो, मुझे भी बता देना,....
 जब कभी बेपरवाह, बेफिक्री से चाहना जीना,
 मुझे हमसफ़र अपना बना लेना....
256.
कुछ इस तरह से तुम्हे बताना चाहती हूँ मैं ..
कि हर बार से कुछ अलग लगे...
कुछ और शब्दों को खोज लूँ....
फिर कहूँगी तुमसे..
 तुम्हे अपना हमसफ़र बनाना चाहती हूँ....मैं..
257.
सवालो में उलझ कर रह गयी है जिन्दगी.....
 जवाब तो कोई मिलता नही...
सवालो के साथ ही,
आज कल मिलता है हर कोई.......
258.
आज इक इतफ़ाक एक साथ हुआ...
बरसो बाद आज वो मिला था,
बरसो बाद ही आज बरसी थी बारिश...
259.
तुम्हारी ख़ामोशी को ही,
मैं आज तक लिखती रही...
तुम कुछ कह देते तो जाने क्या होता...
260.
बेख़ुदी,बेचैनी,उलझन है...
रा मन... तुम हो तो सब कुछ है..
तुम नही तो क्या है जीवन........

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