अपनी खूबसूरती तो...
मैंने तुम्हारी आँखों में देखी थी....
जो अपलक मुझे देखे जा रही थी,
कुछ अनकहे शब्द आँखों में,
उतर आये थे तुम्हारे,
होठ बेचैन थे उन शब्दों को कहने के लिये...
पर शायद मैं तैयार नही थी,
उन आँखों की अनकही को सुनने के लिये,
तभी तो तुम्हारे कुछ कहने से पहले,
मैंने अपनी नजरे फेर ली थी..
मुझे पता था ये नजरे मैंने तुमसे नही,
बल्कि अपनी जिंदगी से फेर रही हूँ...
तब से आज तक...
मैं उन आँखों की अनकही सुनने के लिए,
बेचैन हो भटकती रही हूँ...!!!
बहुत सुन्दर
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