ये साल भी जा रहा है,
हर साल की तरह,
कुछ ख्वाइशें पूरी होते-होते,
अधूरी रह गयी...
कुछ दर्द जिंदगी को जार-जार कर गए,
तो कुछ मरहम होठो पर,
हँसी के साथ आंसू लिए मिल गए...
शिकायत बहुत है,सवाल भी बेहिसाब थे..
सभी यूँ ही उदास अकेले,
पुरानी कैलेंडर की तरह रह गए,
तारीखों में जिंदगी सिमट गयी...
फिर नई यादो की तलाश में,
कुछ पाने की आस लिये,
कुछ बिखरे हुए विश्वास लिये,
इस की दहलीज पर,
हम भी खड़े है...
जो खो दिया है,उस दर्द में,
खुद को समेट कर,
जो पा लिया उस सुकून में
खुद को लपेट कर...
आने वाला साल का,
आगाज हम फिर करँगे,
तारीखे बदलेंगी जरूर,
पलटते कैलन्डर के पन्नो की तरह,
वक़्त के साथ फिर,
दोहराये जायँगे हम सभी,
छूटता कुछ भी नही है इस जहाँ,
सब यही रहता है,
सिर्फ उसकी सूरत बदल जाती है...!!!
Saturday 24 December 2016
छूटता कुछ भी नही है इस जहाँ...!!!
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर रचना ।
ReplyDeleteअभी अभी मैंने एक सवाल पूछा है खुद से... उन उम्मीदों का क्या जो इस साल अधूरी रह गयीं?? खैर ये मेरा सवाल है, मैं तलाश लूँगा जवाब कोई..
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी ये रचना.