अपनी सारी रचनाओं की,
अपनी कल्पनाओ को,
तुम्हारी छवि में ढाल लिया है..
अब तमको मैं ना झुठला पाऊँगी...
तुमसे ही हर ख्वाब को सच मान लिया है...
ख्यालो की बंदिशे खुल कर,
तुम तक ही पहुँची है,
अपनी हथेलियों में रेखाएं,
तुम्हारे नाम की मैंने खींची है,
अब तमको मैं ना झूठला पाऊँगी..
तुमसे ही नसीब अपना मान लिया है....
प्यार वो जो अब तक,
मेरे शब्दो में था,
अब वो तुम्हारी आँखों में देखती हूँ,
इक नाम जिसे सुनने को,
बेचैन रहती थी मेरी साखियाँ,
अब वो मेरी बातों में सुन लेती है..
अब तुमकों मैंने ना झुठला पाऊँगी...
तुमसे ही तुमको मैंने माँग लिया है..."!!!
Sunday, 18 December 2016
तुमकों मैंने ना झुठला पाऊँगी...!!!
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