Tuesday 6 December 2016

तुमसे ही है पहरों,शाम मान लिये थे...!!!

बो इक पल,वो इक लम्हा..
जब तुम्हारी आँखों के सारे फैसले,
मैंने मान लिये थे.....
जब तुम मेरे साथ,
दिनों और सालों का हिसाब लगा रहे थे,
तब ही मैंने तुम्हारे साथ...
जन्मो के बंधन बांध लिये थे...
वो इशारे तुम्हारी मेरी आँखों के,
तुम समझते थे या मैं समझती थी...
जब तुम मुझसे कहने के लिए,
शब्दो को ढूंढ रहे थे...
तब ही तुम्हारे बिन बोले ही,
तुम्हारे दिल के राज मैंने जान लिए थे...
वो सुबह जो तुमसे शुरू होती थी,
तुमसे पूरी होती थी राते...
जब तुम घड़ी की सुइयों से,
मेरे साथ वक़्त जोड़ रहे थे,
तब ही मैंने तुमसे ही है पहरों,
शाम मान लिये थे...!!!

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8 - 12- 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2550 में दिया जाएगा ।
    धन्यवाद

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