Sunday, 29 December 2013

मैं और भी निखरती रही........!!!

साल-दर-साल गुजरते रहे...                      
हम  गिरते रहे सम्हलते रहे, 
यादो के धागे टूटते रहे बंधते रहे.... 
उम्मीदो के सूरज छिपते रहे,
निकलते रहे...... 
कभी मंजिले दूर होती रही,
कभी सिमटती रही.... 
वक़्त के हालातो से मैं टूटती,
और बिखरती रही..... 
गुजर गया ये साल भी, 
गुजरता हर लम्हा मुझे और भी,
कठोर बनाता रहा.... 
इन्ही विपरीत हालातो से,
मैं और भी निखरती रही.... 
साल तो यूँ ही बदलते रहंगे, 
हमारे ठहरने से कुछ भी ठहरेगा नही...
पर हां हमारे बदलने से,
हालत बदल सकते है...... 
कब तक हूँ ही शिकवे शिकायते,
हम खुद से औरो से करते रहंगे.... 
इस बदलते वक़्त के साथ,
हमको भी कुछ बदलना होगा..... 
वक़्त के सांचे में खुद को ढालना होगा 
राहे कितनी भी मुश्किल हो,
मुश्किलो को हल करना होगा...... 
मैं खुद हर बार इन्ही उमीदो के सहारे,
लड़ने के लिए खड़ी करती रही....
इन्ही विपरीत हालातो से,
मैं और भी निखरती रही........!!! 

Saturday, 21 December 2013

इक मुलाकात हुई है तुमसे.......!!!


अर्से बाद  मुलाकात हुई है...                                
तुमसे गुजरे हर लम्हे का हिसाब लेना था...तुमसे
पर अफ़सोस चाह कर भी कहाँ बात हुई है तुमसे....
परिचित कहाँ कुछ था हमारे बीच,
इक अजनबी जैसे कोई मुलाकात हुई है तुमसे....
नजरे कही ना मिल जाये..
कोई राज ना मेरा तुमको मिल जाये,
खुद को तुमसे छुपाते-छुपाते..
इक रहस्मयी मुलाकात हुई है तुमसे....
कुछ सवालो में उलझे जवाब थे तुम्हारे,
कुछ जवाबो में उलझे सवाल थे मेरे...
ऐसी ही कुछ उलझी-उलझी सी मुलाकात हुई है...तुमसे
वो एक दूसरे के सच को झूठ बताना,
वो एक दूसरे के सच को झूठ मान लेना....
आधी झूठी आधी सच्ची इक मुलाकात हुई है तुमसे.......
अर्से बाद  मुलाकात हुई है...
तुमसे गुजरे हर लम्हे का हिसाब लेना था...तुमसे
पर अफ़सोस चाह कर भी कहाँ बात हुई है तुमसे......!!!

Saturday, 7 December 2013

जब तुम नही होते हो...!!!

कुछ कागज़ एक कलम..                                
कुछ स्याही लेकर फिर बैठी हूँ....
तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगी,
आज ये सोच कर बैठी हूँ....
लिखने के लिए कलम भी बेताब है,
पर कोई ख्याल आता ही नही.... 
तुमको जो छोड़ती हूँ तो,
ये शब्द मुझे छोड़ देते है 
क्यों एहसासो को शब्दो में बांध नही पाती हूँ,
जब तुम नही होते हो...
क्यों शब्दो में विश्वास नही ला पाती,
जब तुम नही होते हो...
क्यों जिंदगी तुमसे शुरू...
तुम पर ही खत्म होती है....
क्यों मुझे सवालो के जवाब नही मिलते,
जब तुम नही होते हो..... 
क्यों गुजरता है सिर्फ सफ़र मंजिल नही मिलती,
जब तुम नही होते हो.... 
ये तुम्हारे प्यार का असर है,
या मेरी जिद है कि खुद में तुमको शामिल करने की....
एक दिवार सी बना रखी है.....तुम्हारे नाम की 
खुद को कैद कर रखा है.......तुम्हारे प्यार में 
तुम तो कब के जा चुके हो... 
मेरी राहो से मेरी मंजिलो को छोड़ कर...
मैं ही हूँ तुमको छोड़ती ही नही,
छोड़ना चाहती ही नही.....
खुद को तुमसे बांध कर बैठी हूँ....
तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगी,
आज ये सोच कर बैठी हूँ.....!!!

Wednesday, 27 November 2013

आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका.....!!!

आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका,                 
कितनी कसमे दी वादे दिए,
जिंदगी का वास्ता भी दिया..... 
पर मैं फिर भी खुद को रोक न सकी,
ना जाने क्यों....
आज खुद को छोड़ देना चाहती थी....!
हर कसम तोड़ कर,
खुद को छोड़ कर जाना चाहती थी, 
आज मैंने खुद ना जाने से बहुत रोका....!
कितनी बार...
हाथ थाम कर बिठाया खुद को, 
कितनी बार....
अपने जज़बातो को समझाया खुद को.... 
सारी दुनिया से जीत कर,
आज मैं खुद से हार गयी हूँ.......!
कि अब खुद ही खुद से जिद कर रही थी, 
अब मैं खुद के साथ....और 
धोखे में रह नही सकती..... 
झूठ को अब और सच मान नही सकती.... 
मैंने खुद से कहा अब...
मुझे तुम्हे छोड़ कर जाना होगा...
मैं हार गयी हूँ....
तुम्हारी ये दलीले सुन कर... 
मैं तुम्हारे इन भावो में बह कर,
खुद को खोती जा रही हूँ......
मैं जा रही हूँ.....खुद कि तलाश में...!
जिसे तुम न जाने कहाँ छोड़ आयी हो.... 
अपने एहसासो को दबा कर,
तुम पत्थर बन सकती हो.....
मैं नही...... अब मैं तुम्हारा और साथ नही दे सकती,
और दर्द नही सह सकती.....
तुम जीयो अपने झूठे भ्रम के साथ....
मैं जा रही हूँ......इक वादा तुमसे करती हूँ,
जब इस भ्रम कि दिवार टूटेगी...
तुम सच को जानोगी तो,
मैं खुद तुम्हे मिल जाउंगी......
अलविदा.....!!! 
आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका.......!!!

Friday, 22 November 2013

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-6

                       41.
हज़ारो बहाने है तुम्हारे पास...               
मुझको भूल जाने के लिये, 
मेरे पास सिर्फ एक वजह है....!
तुम्हे याद करने के लिए..... 
                        42.
मैं नाराज इसलिए नही हूँ....कि 
तुम मेरे साथ नही चल सके,
मैं नाराज इसलिए हूँ कि...
मैं तुम्हारे बिना क्यों नही चल सकी....!
                         43.
मैं एक बार फिर उसी राह,
उसी डगर जा रही हूँ...
तुम मिले थे जहाँ तय करने मैं वही सफ़र जा रही हूँ...
यकीन है कि तुम फिर मेरा हाथ थाम लोगे रोक,
लोगे मुझे यूँ तन्हा ना जाने दोगे......!
                         44.
कभी कभी अपनों की भीड़ भी,
बहुत बेचैन कर देती है....और
किसी बहुत अपने की याद दिल जाती है....!
                         45.
इक सुकून की तलाश में तुम तक पहुची थी,
तुमसे मिलकर और भी बेचैन हो गयी.....!
                          46.
जब कभी अँधेरा घेरता है मुझे..... 
तुम्हारी बाहों के घेरे याद आते है,
जब कभी ख़ामोशी घेरती है मुझे.... 
तुम्हारे सीने पर सर रख कर सुनी थी कभी, 
वो धड़कने सुनायी देती है........
मैं कहाँ अकेली चलती हूँ.....इन राहो पर 
मेरे साथ चलती......तुम्हारी परछाई दिखायी देती है......!
                          47.
सब कुछ पा लिया हमने...अब कोई ख्वाइश ना रही, 
फिर भी खाली ही रहा...
मन का कोना कोई....... 
बहुत लोग आये  भरने वो जगह,
फिर भी.... तुम्हारे जाने के बाद वो जगह खाली ही रही....!
                        48.
बहुत मुश्किल से बांध कर रखा है,
खुद को बिखरने से....
कोशिश तो तुमने भी बहुत  कि थी......!
                        49.
तेज धुप में तुमको जो छाँव दे,
वो आँचल  बन जाउंगी मैं... 
तुम पर जो प्यार बन कर जो बरसे,
वो बादल बन जाउंगी मैं.....
तुम्हारे एहसासो को जो वयक्त करे,
वो शब्द बन जाउंगी मैं.... 
तुम जिसे गुनगुनाओगे.
वो ग़ज़ल बन जाउंगी मैं....!
                     50.
हर बार यूँ ही मुस्करा कर मिली हूँ तुमसे,
डर था कही तुम चेहरे पर...
उदासी ना पढ़ लो...! 

Thursday, 14 November 2013

अधूरी रात,.............!!!

वो आधे चाँद कि अधूरी रात,                  
वो अनछुआ अहसास....
वो अनकहे जज़्बात,
आज फिर बहुत याद आयी, 
तुम्हारे साथ गुजरी...
वो अधूरी रात.....! 
वही तारो कि बारात,
वही कही दूर बजती...
शहनाइयों कि आवाज़, 
आज भी सुन रही हूँ....
वही जोर से धड़कती,
तुम्हारी धड़कनो कि आवाज़.....!! 
वही  मेरे साथ परछाई,
बनकर चलती चांदनी का साथ..... 
वही मुझे तुमसे बांधता विश्वास, 
आज भी बेचैन कर देती है 
वो अधूरी रात कि तुम्हारी बात.....!!!

Monday, 11 November 2013

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-5

                 31.                                            
मेरी कविता में तुम हो,
या मेरी कविता ही तुम हो.....
कुछ नही सिर्फ शब्दों का फेर है.....
मेरे शब्द-शब्द ही तुम हो.....!!!
                   32.
तुम्हे अपने एहसासों में पिरोना चाहती हूँ,
तुम्हे ही शब्दों में बांधना चाहती हूँ....
फिर बार  इक टूट कर,
तुममे ही बिखर जाना चाहती हूँ......!!!
                   33.
ना जाने कैसे लोग हकीकत को भुला देते है,
मुझसे तो अब ख्वाब भी भुलाए नही जाते....!!!
                  34.
लोग कहते है कि.........
मैं तुम्हे अभी तक भुला नही पायी.........
पर उन्हें क्या पता.............
मैंने तुम्हे कभी भूलना चाहा ही नही.....!!!
                  35.
मैं कैसे मिटा दूँ .......
निशानियां तेरे प्यार की....-
जब इक-इक याद बन जाती है,
कहानियाँ तेरे प्यार की........!!!
                 36.
हर सांस के साथ तुम्हे महसूस करती हूँ,
तुम्हे भूल गयी हूँ ये सच है कि.. 
ये झूठ मैं हर बार बोलती हूँ.....!!!
                  37.
हम एक दुसरे से अलग होकर,
अपनी जिन्दगी ढूंढ़ते रहे...
इक लम्बा सफ़र तन्हा तय करने के बाद,
हमें पता चला कि.....
हमारी जिन्दगी तो एक दुसरे के साथ थी....!!!
                  38.
बेशक तुम पर ही लिखी मेरी हर कविता होती है,
फिर भी तुम्हे जान कर हैरानी होगी कि...
वो तुम्हारे लिए नही होती है......!!!
                  39.
कुछ शब्द  समेटे है मैंने तुम्हारे लिये,
तुम कहो तो बिखेर दूँ इन्हें पन्नो पर.....!!!
                 40.
मैं तुम में ही कही जी रही हूँ,
ना समझना मुझे खुद से दूर धड़कन बन कर...
तुम्हारे दिल में ही धड़क रही हूँ मैं.......!!! 
   



Friday, 8 November 2013

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-4

                      22.                                  

यूँ ही झरोखे से झांक कर,
हर रोज ढूंढ़ती ही तुम्हे,
अपलक हर रोज़ खामोश,
यूँ ही निहारती हूँ तुम्हे,
सुन ले न कोई यूँ ही...
मौन रह कर पुकारती हूँ तुम्हे....
                    23.
अपनी प्यारी बातो में,
तुम मुझको उलझा देते हो...
मैं समझू कुछ उससे पहले,
तुम मुझको बहला देते हो....
हार तो मैं तब जाती हूँ...
मेरे रूठने पर भी जब,
तुम सिर्फ मुस्करा देते हो........!!! 
                   24.
हम भी असर देखना चाहते है,
दिल की बातो की कब होगी,
उनको खबर देखना चाहते है.....!!!
                 25.
एहसास तो है..... 
पर उन्हें बयाँ करने के लिए शब्द नही मिल रहे है,    
ढूढ रहे है हम एक दूसरे को....
शब्द हमें नही मिल रहे है.....
या शब्दों को हम नही मिल रहे है......!!!
                26.
किसी की गलतियां बता कर,
उसे छोड़ देना बहुत आसान है...
पर उन गलतियों की वजह जान कर,
उसे माफ़ करना इतना भी मुशकिल नही है.....!!!
                 27.
चलो कुछ बाते चाँद से करते है,
कुछ यूँ आया है चाँद मेरी छत पर,
कुछ बाते कह रही हूँ मैं अपने दिल की...  
कुछ बाते चाँद भी बता रहा है तुम्हारे दिल की.....!!!
                28.
आज चाँद से तुम्हारे लिए एक सन्देश भिजवाया है,
तुम भी नज़र भर कर देख लेना...
मैंने अभी-अभी चाँद में तुम्हे ही पाया है.....!!!
               29.
आज सुबह थोड़ी ज्यादा हसीन हो गयी है.....
क्यों कि मैंने कुछ रंग तुम्हारी दोस्ती का मिला दिया है.....
कुछ तुम्हारी बातो को अपने शब्दों में सजा दिया है......
कुछ अनछुए एहसासों ने....
कुछ खुबसूरत ख्वाबो ने.....
कुछ अनकहे ख्यालो ने........
इस सुबह को और भी ख़ास बना दिया है...... !!!
                30.
तुम नही हो....फिर भी हर घड़ी तुम्हारे साथ ही गुजर रही है.......
अब क्या कहू इससे ज्यादा.....? 
कि तुम से दूर जाने के लिए भी......
मुझे तुम्हारी ही जरुरत पड़ रही है..........!!!

Tuesday, 5 November 2013

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-3

                      15.                                   

कितनी ही दूरियाँ क्यों न हो जाए...
हालत कितने ही क्यों न बदल जाए...
कितना वक़्त क्यों न कम पड़ जाए...
पर फिर भी,कुछ है जो.....
हमें एक दुसरे से जोड़े रखता है...!!!
                        16.
जिन्दगी का तो पता नही.....
पर तुम्हारे बिन जिन्दगी का इक,
लम्हा भी गुजरता नही.......!
                        17.
हर सांस के साथ तुम्हे महसूस करती हूँ मैं 
तुम्हे भूल गयी हूँ ये सच है कि ये 
झूठ मैं बार बोलती हूँ.… !!
                         18.
तुम्हारे साथ बीते पल,
तुम्हारी बातो में गुजरी राते, 
सब झूठ ही था तुम्हारे लिए 
फिर भी कितनी सच्चाई से,
 इस झूठ को जिया है मैंने....!!!
                         19.
कितने अनकहे अनसुलझे एहसासों के साथ,
तुमसे बंधी रही हूँ मैं..... 
साल-दर-साल तुम्हे चाहती रही हूँ मैं.....!!!
                         20.
इस बदलते वक़्त के साथ....
तुम तो बदलते चले गए.......पर मेरा क्या...????
न मैं बदली.....न ही मेरे लिए वक़्त बदला...........  
                          21.
समझना तो यही है.....वो कितना समझते है.....
पर क्या करे? प्यार तो उनकी नासमझी पर भी आता है......!!!

Friday, 1 November 2013

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-2

                  8.                                             
ढूढती कभी-कभी निगाहें जिसे ढूंढ़ती है, 
उसे ही देखना नही चाहती है......!! 

                 9.
नही चाहती कि बहुत लोग पढ़े मुझे,
मेरे शब्द सिर्फ तुम तक ही पहुँच जाये.. 
इतना ही काफी है....!! 

                10.
हम न जाने कब उसकी जिन्दगी का
बीता हुआ कल बन गए,
और वो आज भी हमारे आज में सामिल है.....!!

                    11.
तुम्हे प्यार करने करने की सजा खुद को देती रहती हूँ...
तुम्हे भूल न जाऊं इसलिए...
तुम्हे लिखती रहती हूँ.....!!

                     12.
ये बदलो का गर्जना......
बिजली का चमकना बहुत डराता है मुझे.......
तुम न जाने कहाँ चले गये हो,
वो तुम्हारी बाँहों में सम्हालना याद आता है मुझे.........!!

                  13.   
आज कल कुछ  भी लिखने से डरती हूँ,
 डर है कि...........
कही अपने ही शब्दों में बिखर न जाऊं......!!

                   14.
मुझे नही खबर कि तुम्हारी जिन्दगी में वो कौन सा पल है.....???
जो सिर्फ मेरे लिए हो.....
पर मेरी जिन्दगी का हर इक पल.....
सिर्फ तुम्हारे लिए है..........!!!


Saturday, 26 October 2013

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-1

                       1.
वो दूर हो कर भी मुझसे दूर न रहा कभी                  
मैं पास हो कर भी उसके पास न रही कभी.....!!!
                 
                       2.
मैंने तुम्हे कभी याद नही किया क्यों कि  
मैंने तुम्हे कभी भुलाया ही नही.......!!!


                         3.
वो दूर हो कर भी मुझसे दूर न रहा कभी,
मैं पास हो कर भी उसके पास न रही कभी......!!!

                        4.
तुमसे दूर जितना भी खुद को ले जाती हूँ,
उतनी ही तुम्हारे करीब खुद को पाती हूँ.......!!!

                       5.
कुछ इक पल और रुक जाते तो अच्छा होता,
मेरे बिना कुछ कहे ही....    
तुम समझ जाते तो अच्छा होता.....!!!


                      6.
मेरी आखों को तुम्हारा इन्तजार आज भी है.…
मैं झूठ कहूँ तो कहूँ.....
सच तो यही है......
इस दिल को तुमसे प्यार आज भी है.....!!!


                 7. 
धड़कने तो बेवजह धड़कती है,
ये किसी की सुनती कहाँ है....
लाख समझाने की कोशिश करो,
ये समझती कहाँ है.....!!!                                                    

Tuesday, 15 October 2013

ये जो ख़त मैंने तुमको लिखे है..... !!!

ये जो ख़त मैंने तुमको लिखे है.....                
बंद है इन लिफाफों में...अभी तक,
तुमने खोले ही नही......
कितने रंग-बिरंगे पन्नो पर,
सजे मेरे शब्द.....
तुमने कभी पढ़े ही नही.....!

दिल की बैचेनियों को,
धडकनों की गुस्ताखियों को....
इन खतो में गढ़ा मैंने...... 
मेरे खतो को तुम समझते,
तुम तो इन शब्दों की गहराइयों में,
कभी उतरे ही नही.......!!

सुबह के निकलने से लेकर,
शामो के ढलने तक जिक्र है.... इन खतो में, 
गुजरते लम्हों के साथ,
दिल जो करता तुम्हारी वो फ़िक्र है...इन खतो में 
बंद है कब से कितने राज़,
इन खतो में....
तुमने कभी पढ़े ही नही.....!!!

इन खतो को थाम कर कब से, 
तुम्हारे इन्तजार में बैठी हूँ.....अभी तक 
तुम उन राहो से.......कभी गुजरे ही नही.......!!!!


Monday, 7 October 2013

सीधे सरल शब्दों में, मैंने दिल की बात कही है......!!!

सीधे सरल शब्दों में,                                 
मैंने दिल की बात कही है....
सीधे सरल तरीके से,
तुम्हारे दिल तक पहुच गयी है.... 


सोच समझ कर अगर कहती मैं,
तो बात न इतनी सीधी होती...
वक़्त बहुत लगता फिर तो,
तुम्हारे दिल तक न पहुची होती...... 

होठो तक आते-आते जैसे,
कोई बात ठहर गयी थी... 
सवालो के जवाब पाते-पाते,
जैसे कोई बात उलझ गयी थी... 
अब मैंने न कुछ भी,
सुलझाने की कोशिश की है....
बस सीधे सरल शब्दों में,
सीधी-सीधी बात कही है 
सीधे सरल तरीके से,
तुम्हारे दिल तक पहुच गयी है.....

भावो और एहसासों को,
अल्फाज़ न अपने दे पायी.... 
दिल के जज्बातों को,
आवाज न अपनी दे पायी....
कहने को कुछ मैं कब से,
गहरे शब्दों को ढूंढ़ रही थी..... 
शब्द मिले न मुझको ऐसे,
हार गयी मैं.....
सीधे दिल से दिल की बात कही है.....
सीधे सरल तरीके से,
तुम्हारे दिल तक पहुच गयी है.......!!!

Tuesday, 1 October 2013

अपनी हदों से गुजर रही हूँ मैं...............!!!

अपनी हदों से गुजर रही हूँ मैं,                   
खुद से लड़ने की जिद कर रही मैं...
जाने की रौशनी की तलाश में,
गहरे अंधेरो में उतर रही हूँ मैं.... 

अभी पार समंदर कर रही हूँ मैं, 
लहरों से उलझ रही हूँ मैं..... 
खुद को खो देने के जूनून में, 
समंदर की गहराइयों में उतर रही हूँ मैं....

अभी आकाश को खुद में समेट रही हूँ मैं,
चाँद तारो से लड़ रही हूँ मैं.....
किसी को चाँद देने के जूनून में,
मैं हर हद से गुजर रही हूँ मैं....... 

अभी शब्दों को गढ़ रही हूँ मैं.... 
किसी की ख़ामोशी पढने के जूनून में,
मैं छुपे एहसासों को शब्दों में रच रही हूँ मैं........




Wednesday, 11 September 2013

मेरी ख़ामोशी भी जिक्र तुम्हारा करती है.........!!!

बात जब वफ़ाओ की करती हूँ,                                         
तो जिक्र तुम्हारा होता है...... 
बात जब एहसासों की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है.......
बात जब यादो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......

बात ख्वाबो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है...... 
बात जब सवालो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है...... 
बात जब जवाबो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
  
बात जब शब्दों की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......  
बात जब अर्थो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है...... 

बात जब शाम की ढलने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......  
बात रातो के अंधेरो की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......  
बात जब सूरज निकलने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......
  
बात जब हवाओं के रुख की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......  
बात जब बादल के गरजने की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......  
बात जब सावन की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......  
बात जब सखियों से साजन की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है......  

बात तन्हाई की करती हूँ,
तो जिक्र तुम्हारा होता है...... 
कोई बात करू न करू......
मेरी ख़ामोशी भी जिक्र तुम्हारा करती है.........!!!

Tuesday, 3 September 2013

तुम्हारी तस्वीर उतरने की कोशिश की है मैंने......!!!

                                  

एक बार फिर इन्द्रधनुष के रंगों को लिया है मैंने,
ख्यालो को ब्रश बना लिया है मैंने 
जिन्दगी के कैनवास पर,
तुम्हारी तस्वीर उतरने की कोशिश की है मैंने..... 

खाली पड़े कैनवास पर,
कुछ यूँ आड़ी-तिरछी लकीरे खींच दी मैंने....
जिन्दगी की ठोकरों से फिर से,
सम्हलने की कला सीख ली हैं मैंने...... 
इस बेरंग जिन्दगी में तुम्हारे अक्स के साथ,
कुछ रंग भरने की कोशिश की है मैंने........
एक बार फिर........
जिन्दगी के कैनवास पर,
तुम्हारी तस्वीर उतरने की कोशिश की है मैंने..........!!!

Tuesday, 27 August 2013

हे कृष्ण.....मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी.......!!!

हे कृष्ण.....                                                      
             
नही बनना चाहती थी मैं,
कोई मिशाल.......
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी.......

हे कृष्ण.....
नही चाहती थी मैं....
असाधारण सी ख्याति,
मैं तो सिर्फ साधारण सा जीवन,
तुम्हारे साथ जीना चाहती थी......
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी.......

हे कृष्ण.....
नही चाहती थी....
किसी मंदिर की मूरत बनना, 
मैं तो सिर्फ...
तुम्हारे दिल में रहना चाहती थी.... 
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी......

हे कृष्ण.....
नही ही चाहती थी मैं.…कि
हर घर में पूजी जाऊं,
मैं तो सिर्फ....
तुम्हे पूजना चाहती थी....
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी......

Saturday, 24 August 2013

अब तुम साथ नही हो......!!!

कुछ पल इन अंधेरो में,                                    
मुझे जीने दो.....
न जाने क्यों अँधेरे...
अब मुझे अच्छे लगते है... 
डरती तो मैं भी थी कभी इन अंधेरो से, 
तुम्हारे झूठे वादे भी सच्चे लगते थे........! 


कुछ पल इन अंधेरो से,
बाते कर लेने दो मुझे..... 
न जाने क्यों ये काले साये भी, 
अपने से लगते है....
डरती तो मैं भी थी कभी इन सायों से,
जब मेरे हमसफ़र बनकर चलती,
तुम्हारी परछाई भी सच्ची लगती थी.......! 

अब न रोको इन पतझड़ो को,
तस्वीरो में उतारने दो मुझे.....
कुछ पल और इन सूखे पत्तो के,
साथ गुजारने दो मुझे...... 
न जाने अब ये पतझड़ भी,
जिन्दगी से लगते है.....
डरती तो मैं भी थी कभी इन पतझड़ो से, 
जब तुम्हारे साथ सूखे गुलाब भी,
खिले से लगते है.........! 

अब मुझे चलने दो इन सुनी राहो पर, 
अब लगने दो ठोकरे मुझको..... 
न जाने क्यों ये राहे भी,
मंजिल सी लगती है...... 
डरती तो मैं भी थी इन ठोकरों से कभी, 
जब तुम्हारा हाथ थाम,
इन राहो पर सम्हला करती थी...... 

न रोको मुझे अब खो देने दो खुद को,
भूल जाने दो खुद को......
कि अब डर नही लगता कुछ भी खोने से, 
क्यों कि अब तुम साथ नही हो.……..............!!! 

















Saturday, 17 August 2013

मेरी दीवानगी की हद तो देखो.........!!!

इस भीड़ में इक चेहरा ढूंढती हूँ मैं.…               

मेरी  दीवानगी की हद तो देखो.........
हर चहेरे में तुम्ही को देखती हूँ मैं.......!

तुम साथ दो तो ये सफ़र तय मैं कर लूँ,
यकीनन मंजिल पा लुंगी मैं.……  
मेरी  दीवानगी की हद तो देखो.........
अपनी परछाई में तुम्हारा अक्स देख कर,
साथ ले कर चलती हूँ मैं.……। 

तुम्हारी आखों में जो खुद को देखूं,
और भी खुबसूरत लगती हूँ मैं 
मेरी  दीवानगी की हद तो देखो.........
तुम्हे अपना आइना मान कर,
सजती संवरती हूँ मैं.………. 

तुम जरा जाओ मेरे ख्यालो से तो,
कुछ और लिखूं....
मेरी  दीवानगी की हद तो देखो.........
हर शब्द में तुम्ही को लिखती हूँ मैं......!!!

Sunday, 11 August 2013

धड़कन भी धड़क रही है...........!!!

हाथो में महेंदी लगी है....                         
कलाइयों में हरी चूड़ियाँ भी सजी है,
फिर लगी सावन की झड़ी है.....
कि हर आहट पर....
धड़कन भी धड़क रही है.......!!!

फिर किसी की याद में,
आइना सामने रख कर....
हर गोरी सज संवर रही है.....
कभी खुद में ही शरमा कर सिमट रही है....
पल-पल किसी के प्यार में,
टूट कर बिखर रही है..........!!!
कि हर आहट पर धड़कन भी धड़क रही है...........!!!

वो लबो से कुछ कहे न कहे,
उसकी पायल की झंकार,
उसकी आखों में बसा काजल में प्यार.....
चूड़ियों की खनक,
कह रही बहुत कुछ,
वो बिंदियाँ की चमक..........
कि अब प्यार खुशबू,
उसकी साँसों में उतर रही है....................!!!
कि हर आहट पर धड़कन भी धड़क रही है............!!!

Saturday, 3 August 2013

हर रिश्ते में खुबसूरत दोस्ती होती है......!!!


जिन्दगी के हर मोड़ पर,                       
इक दोस्त की जरुरत होती है.....
हर रिश्ते में खुबसूरत दोस्ती होती है......

दिल की बाते दिल तक पहुँचाती,
बिना शब्दों के सब कुछ कह जाती....
दोस्ती होती है......
हर रिश्ते में खुबसूरत दोस्ती होती है......

न जाने कितने अनछुए पल,
न जाने कितनी अनकही बाते,
जिनसे मैं खुद भी अनजान थी
वो सारी सखियों को पता होती है....
कितने राज़ छुपाये....
ये दोस्ती होती है.......
हर रिश्ते में खुबसूरत दोस्ती होती है......

न जाने कितने ख्वाब देखे इन आँखों ने,
न जाने कितनी बार बादल बरसे है....इन आँखों से,
हम खुद भी बेखबर रहे है......जिन बातो से..
उन बातो की गवाह......
दोस्ती होती होती है........!!!
हर रिश्ते में खुबसूरत दोस्ती होती है......

Thursday, 1 August 2013

तुम्हे जीने का एहसास है.....मेरे पास.....!!!

एक अधूरे ख्वाब की,                                   
पूरी रात है.....मेरे पास...
तुम हो ना हो,
तुम्हे जीने का एहसास है.....मेरे पास.....!

तुम्हे छोड़ कर जाना हो तो जाओ,          
अभी उम्मीद छोड़ी नही है मैंने...
तुम्हारा इन्तजार करुँगी,
मुझे थामने के लिये....
तुम्हारा विश्वास है.....मेरे पास.....!!

मैं बढ़ रही हूँ,
कदम-दर-कदम मंजिल की तरफ...
मुझे तन्हा न समझना तुम कभी,
हर कदम तुम्हारा साथ है......मेरे साथ....!!!

गुजरे हुए लम्हों की बाते लेकर,
तुम्हारे ख्यालो में गुजरी राते लेकर....
अपने सिरहाने लेकर लेटी हूँ.....
मुझे नींद के आगोश में ले जाती,
तुम्हारी यादे है......मेरे पास.......!!!!

जिन्दगी के उलझे सवालो में,
कितनी बार टूट कर बिखरी हूँ....
अपने ही सवालो से........
फिर समेटा है खुद को,
मेरे सवालो के दिए....
तुम्हारे वो जवाब है......मेरे पास......!!!!!

इस भागती जिन्दगी में,
सब छुटा जा रहा है..
तुम से दूर हुए दिन हफ्तों में,
हफ्ते महीनो में,महीने साल में.....
बदलते जा रहे है......
इस बदलते वक़्त के साथ,
तुम्हारे साथ बीते लम्हात है.....मेरे साथ.....!!!!!!!


एक अधूरे ख्वाब की,                                   
पूरी रात है.....मेरे पास...
तुम हो ना हो,
तुम्हे जीने का एहसास है.....मेरे पास.....!

Friday, 26 July 2013

मेरा पागलपन सा लगता है..... !!!

वो तुम्हारा इन्तजार करना.....                     
सब कुछ छोड़ कर....तुम्हे याद करना....
खुद पर हँसती हूँ,
जब याद आता है......वो बचपना मेरा....
मेरा पागलपन सा लगता है.....
वो बचपना मेरा.......!

वो तुम्हारे इक कॉल का इन्तजार करना...
कही चूक ना जाऊ....तुमसे बात करने में,
वो हर  वक़्त फ़ोन को......
अपने पास रखना मेरा........
जाने कितनी बार.....
तुम्हारा नंबर
को फ़ोन पर देखा ....
और डायल भी किया....
पर तुम तक खबर पहुँचती.....
इससे पहले ही न जाने किस डर से,

वो कॉल को काट देना मेरा.......
मेरा पागलपन सा लगता है......
वो बचपना मेरा......................!!

वो हर वक़्त,हर पल,हर बात में,
तुम्हारा ही ख्याल आना.......
अकेले ही यूँ ही बैठे-बैठे,
तुमको याद करके......वो मेरा मुस्करा देना......
वो मेरा सजना सँवरना,
यूँ ही आईने में खुद को...
देख कर नजरे झुका लेना......
मेरा पागलपन सा लगता है.......
वो बचपना मेरा.....................!!!

वो तुमको देख कर भी......अनजान बनना,
वो तुमसे ही नजरे चुरा कर,
तुमको ही देखना मेरा......
वो तुम्हारी बाते न करके भी,
हर बात में तुम्हारा ही जिक्र लाना मेरा.......
वो बेफिक्र तुम्हारे ख्यालो में,
खोये रहना मेरा.......
मेरा पागलपन सा लगता है.........
वो बचपना मेरा.....................!!!!

Tuesday, 23 July 2013

बहुत जादुवी है ये शब्द.....!!!

इन शब्दों को क्या कहूँ.....                               
कभी खुद के लिखे शब्द जख्म दे जाते है.......
जो हम कहते नही खुद से,
वो सब कुछ ये शब्द कह जाते है.......

कभी ख़ामोशी को शब्द मिल जाते है,          
तो कभी शब्दों में ख़ामोशी खो जाती है....
कुछ एहसासों को अर्थ देते-देते,
ये शब्द भी कभी खामोश हो जाते है.......

कभी हमारे मौन में,                              
यही शब्द चीखते है-चिल्लाते है....
तो कभी हम कुछ कहना भी चाहे,
तो शब्द नही मिल पाते है.........
कितनी ही बार हमारे वजूद को,
वयक्त करते शब्द निशब्द हो जाते है......

कभी ये शब्द खूबसूरती को समेट कर,
पन्नो पर बिखेर देते है......
कभी अतीत में लिपट कर,
इतिहास भी रच देते है.....
अपनी जिद पर आ जाये तो,
अनजानी-अनसुनी सी भाषा को भी,
खास बना देते है......

कभी ये शब्द सरल सीधे,
दिल में उतर जाते है.....
कभी ये कठोर पत्थर की तरह बिखर जाते है.......
कभी ये शब्द लबो की मुस्कान बनते है,
तो कभी आसुओं का सबब बनते है.....

बहुत जादुवी है ये शब्द.....
जिसने इन्हें समझा नही,
तो जीती हुई बाजी भी हारी है उसने.....
जिसने भी इनका जादू समझ लिया,
हारी हुई जंग भी जीती है उसने................!!!

Friday, 19 July 2013

वो ख्वाबो वाला प्यार.....!!!


मुझे भी कभी मिल जायेगा.....             
वो ख्वाबो वाला प्यार.....
जिसमे जुबा कुछ नही कहती,
आखों में सारी बाते होती है.....
मुझे भी कभी मिल जायेगा
वो आखों ही आखों वाला प्यार.....

जिसमे हर आहट पर धडकने धडकती है,
किसी का नाम लेकर साँसे चलती है,
रात भर जागती आखों वाला प्यार.....
मुझे भी कभी मिल जायेगा.....
वो ख्वाबो वाला प्यार.....

जिसमे ढलती शामो के साथ,
किसी के होने का एहसास होता है....
कोई दूर हो कितना पर,
दिल के पास होता है.....
सामने होकर भी इशारों में,
होती बातो वाला प्यार......
मुझे भी मिल जायेगा,
कभी वो इशारो वाला प्यार.......
मुझे भी कभी मिल जायेगा.....
वो ख्वाबो वाला प्यार.....

जिसमे इतिहास के किस्से....और,
परियों की कहानिया होती है....
हर पल प्यार की निशानियाँ होती है
हो जाए मुझे भी वो किताबो वाला प्यार.....
मुझे भी कभी मिल जायेगा.....
वो ख्वाबो वाला प्यार.....!!

Friday, 12 July 2013

बस तुम नही हो....!!!!!

वही सावन के झूले है....                                            
वही बरसता पानी है....
वही भिगोती बुँदे है...
बस तुम नही हो.....!!

वही टेढ़ी मेढ़ी राहे है....                                  
वही ठंड से कांपती हवाये है.....
वही तुम्हारे इन्तजार में थमी निगाहें है.....
वही बैचैन करती आहे है.....
बस तुम नही हो....!!

वही बिखरते हुए सपने है....
वही टूटी हुई कसमे है....
वही लोगो की बाते है...
वही दुनिया की रश्मे है...
बस तुम नही हो....!!

वही दूर तक फैला समंदर है....
वही आती हुई लहेरे है....
वही कभी न खत्म  होती राहे है....
वही ठहरी हुई मंजिले है...
बस तुम नही हो....!!

वही आधी-अधूरी बाते है....
वही नींदों से कोसो दूर उदास आखें है...
वही तुम्हारा नाम लेती मेरी साँसे है....
बस तुम नही हो....!!

वही तुममे ही डूबी मेरी भावनाये है.....
वही तुम्हारे लिए ही रची मेरी रचनाये है....
बस तुम नही हो....!!

Tuesday, 2 July 2013

तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं.....!!1

हर बार खुद को ढूंढ़ कर....                  
खुद से मिलाती हूँ मैं.....
तुम मिले थे....

कभी जिन राहो में...
फिर उन्ही राहो पर कही रुक ना जाऊं....
उन राहो से तुम्हारे निशानों को,
मिटाती हूँ मैं....
तुम अब फिर न मिलोगे कभी.....
साथ न दोगे कभी...
तुम अब कही नही हो....
हर बार ये सच...
खुद को बताती हूँ मैं.....समझाती हूँ मैं.....
जब कभी कोई ख्वाब सजाती हूँ मैं....
खुद को ही नही उसमे पाती हूँ मैं....
कितना भी ले आऊं खुद को......तुमसे दूर...
हर बार खुद से ही हार जाती हूँ मैं....
चलती हूँ....किसी भी राह...
तुम तक ही पहुँच जाती हूँ मैं.....

Friday, 28 June 2013

कुछ कहती है बुँदे.......!!!

मुझ को भिगोती है बुँदे......        
तुम्हारा प्यार बन कर......
मुझे छूती बुँदे.....
तुम्हारा एहसास बन कर....
कुछ कहती है बुँदे.....
तुम्हारी आवाज़ बन कर.....
मुझ पर ठहरती है बुँदे....
तुम्हारी नजर बन कर.....
मुझे थामती है ये बुँदे....
तुम्हारी बाहें बन कर....
मेरे होटों पर बिखर जाती है बुँदे....
तुम्हारी कविता बन कर....
हर कोई अनजान है इनसे.....
मेरे आंसुओं में घुल जाती है बुँदे.....
बहुत रुलाती है बुँदे......
तुम्हारी याद बन कर.....

Saturday, 22 June 2013

जवाब क्या होता...........?

क्यों मुझे हरने दिया.......
मेरी हार तुम्हारी हार नही थी.........?
क्यों मुझे टूटने दिया......
क्या मेरे टूटने से तुम भी बिखर न जाते.......?
क्यों मुझे तनहा छोड़ दिया.........
क्या मेरी यादे तुम्हे भी बेचैन न करती.....?
ऐसे बहुत से सवाल थे....
जो मैं तुमसे पूछना चाहती थी...
पर अच्छा  ही है नही पूछा.....
क्यों कि तुम कोई जवाब नही देते........
हमेशा की तरह खामोश रह कर.........
मुझे इस उलझन के साथ छोड़ देते...........
कि अगर तुम जवाब देते...........तो जवाब क्या होता...........?

Tuesday, 18 June 2013

चाँद तुम साक्षी हो ......!!!

चाँद तुम साक्षी हो......                 
मेरे प्यार के....मेरे दर्द के...

मेरे आंसूओं के......
तुम साक्षी हो .....
मेरी कोशिशो के....

मेरी दुआओं के.....
तुम साक्षी हो......
रात भर जागती मेरी आखों के....

मेरे टूटते ख्वाबो के...
तुम साक्षी हो....
दूर तक जाती मेरी अँधेरी राहों के....

ख़ामोशी में धड़कती मेरी धडकनों के....
तुम साक्षी हो........
रात से लम्बी हमारी बातो के.......

यादो में गुजरती उन काली रातो के......
तुमसे कहूँ तो क्या कहूँ....... 

कि तुमने सम्हाला है मुझे;
हर दौर में....

बचपन में मेरे लिए...
खिलौना बन कर....
जब बड़ी हुई तो मेरी आखों में...

हज़ारो ख्वाब बन कर.......
जब तनहा हुई.......

हमसफ़र बन कर हर रोज़..
मेरी बातो को सुना है तुमने....
न जाने कितनी राते यूँ ही तुम्हे निहारती......

कुछ तुममे तलाशती गुजारी है मैंने.......
तुम साक्षी हो......
मेरी लिखी इन पंक्तियों के...
तुम साक्षी हो......
सबसे छिप कर किसी कोने में...

सुनाई देती मेरी सिसकियों के......
तुम साक्षी हो.....
मेरे टूट कर बिखरने के ......

मेरी उम्मीदों के बधने के.........

Saturday, 25 May 2013

इस बार लिख दूंगी.....!!!


जब भी कलम उठाती हूँ,सोचती हूँ...                                            
इस बार लिख दूंगी.....
सब उद्गार अपने दिल के 
इन शब्दों से मिल के .....


जब भी कलम उठाती हूँ,सोचती हूँ....
इस बार लिख दूंगी.... 
जीतने के सब गुण 
हार से मिल के...... 

जब भी कलम उठाती हूँ,सोचती हूँ....
इस बार लिख दूंगी.... 
हकीकत में बदलने की तरकीबे 
सपनो से मिल के.... 

जब भी कलम उठाती हूँ,सोचती हूँ...
इस बार लिख दूंगी.... 
इस बार अपने हौसलों की उचाईयां 
आसमा से मिल के.......!!!

Tuesday, 16 April 2013

मैं टूटना नही चाहती थी......!!!


मैं टूटना नही चाहती थी......                                                
मैं गिर कर सम्हालना चाहती थी..
चाहे जैसी हो चलना चाहती थी
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....

मैं रिश्तों मे बंधना चाहती थी...
मैं बिखर कर सिमटना चाहती थी....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....

मैं  लड़ना चाहती थी...
जीतना चाहती थी...
हारना चाहती थी....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....

मैं  एहसासों  छुना चाहती थी....
सपनो को जीना चाहती थी...
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....

मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
लम्हों को पिरोना चाहती थी....
बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!