कुछ पल इन अंधेरो में,
मुझे जीने दो.....
न जाने क्यों अँधेरे...
अब मुझे अच्छे लगते है...
डरती तो मैं भी थी कभी इन अंधेरो से,
तुम्हारे झूठे वादे भी सच्चे लगते थे........!
कुछ पल इन अंधेरो से,
बाते कर लेने दो मुझे.....
न जाने क्यों ये काले साये भी,
अपने से लगते है....
डरती तो मैं भी थी कभी इन सायों से,
जब मेरे हमसफ़र बनकर चलती,
तुम्हारी परछाई भी सच्ची लगती थी.......!
अब न रोको इन पतझड़ो को,
तस्वीरो में उतारने दो मुझे.....
कुछ पल और इन सूखे पत्तो के,
साथ गुजारने दो मुझे......
न जाने अब ये पतझड़ भी,
जिन्दगी से लगते है.....
डरती तो मैं भी थी कभी इन पतझड़ो से,
जब तुम्हारे साथ सूखे गुलाब भी,
खिले से लगते है.........!
अब मुझे चलने दो इन सुनी राहो पर,
अब लगने दो ठोकरे मुझको.....
न जाने क्यों ये राहे भी,
मंजिल सी लगती है......
डरती तो मैं भी थी इन ठोकरों से कभी,
जब तुम्हारा हाथ थाम,
इन राहो पर सम्हला करती थी......
न रोको मुझे अब खो देने दो खुद को,
भूल जाने दो खुद को......
कि अब डर नही लगता कुछ भी खोने से,
क्यों कि अब तुम साथ नही हो.……..............!!!
मुझे जीने दो.....
न जाने क्यों अँधेरे...
अब मुझे अच्छे लगते है...
डरती तो मैं भी थी कभी इन अंधेरो से,
तुम्हारे झूठे वादे भी सच्चे लगते थे........!
कुछ पल इन अंधेरो से,
बाते कर लेने दो मुझे.....
न जाने क्यों ये काले साये भी,
अपने से लगते है....
डरती तो मैं भी थी कभी इन सायों से,
जब मेरे हमसफ़र बनकर चलती,
तुम्हारी परछाई भी सच्ची लगती थी.......!
अब न रोको इन पतझड़ो को,
तस्वीरो में उतारने दो मुझे.....
कुछ पल और इन सूखे पत्तो के,
साथ गुजारने दो मुझे......
न जाने अब ये पतझड़ भी,
जिन्दगी से लगते है.....
डरती तो मैं भी थी कभी इन पतझड़ो से,
जब तुम्हारे साथ सूखे गुलाब भी,
खिले से लगते है.........!
अब मुझे चलने दो इन सुनी राहो पर,
अब लगने दो ठोकरे मुझको.....
न जाने क्यों ये राहे भी,
मंजिल सी लगती है......
डरती तो मैं भी थी इन ठोकरों से कभी,
जब तुम्हारा हाथ थाम,
इन राहो पर सम्हला करती थी......
न रोको मुझे अब खो देने दो खुद को,
भूल जाने दो खुद को......
कि अब डर नही लगता कुछ भी खोने से,
क्यों कि अब तुम साथ नही हो.……..............!!!
जब दीवानगी हद से बढ़ जाती है तो खुद को खोने से भी डर नही लगता .....गहरे अहसास !
ReplyDeleteशुभकामनायें!
The attached image speaking volumes about the feelings expressed!
ReplyDeletewell presented!
कुछ पल इन अंधेरो से,
ReplyDeleteबाते कर लेने दो मुझे.....
न जाने क्यों ये काले साये भी,
अपने से लगते है....
डरती तो मैं भी थी कभी इन सायों से,
जब मेरे हमसफ़र बनकर चलती,
तुम्हारी परछाई भी सच्ची लगती थी.......!
वाह बहुत सुंदर
नेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
ReplyDeleteभाद्र पट के आगमन की वधाई !!
आत्माभिव्यक्ति के लिये वधाई !!
नेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
ReplyDeleteभाद्र पट के आगमन की वधाई !!
आत्माभिवाक्ति हेतु वधाई !!
waah bahut achchhi kavita ........
ReplyDeletekyun ki ab tum saath nahi ho!.........nice shandaar prastuti.............
ReplyDeleteडरती तो मैं भी थी कभी इन सायों से,
ReplyDeleteजब मेरे हमसफ़र बनकर चलती,
तुम्हारी परछाई भी सच्ची लगती थी.......!
वाह बहुत सुंदर
फुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कुराहट पर ज़रूर आईये
खोने को कुछ नहीं हो तो साहस बढ़ जाता है. सुन्दर रचना
ReplyDeleteअब मुझे चलने दो इन सुनी राहो पर,
ReplyDeleteअब लगने दो ठोकरे मुझको.....
न जाने क्यों ये राहे भी,
मंजिल सी लगती है......
डरती तो मैं भी थी इन ठोकरों से कभी,
जब तुम्हारा हाथ थाम,
इन राहो पर सम्हला करती थी......
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .......
अब मुझे चलने दो इन सुनी राहो पर,
ReplyDeleteअब लगने दो ठोकरे मुझको.....
न जाने क्यों ये राहे भी,
मंजिल सी लगती है......
डरती तो मैं भी थी इन ठोकरों से कभी,
जब तुम्हारा हाथ थाम,
इन राहो पर सम्हला करती थी......
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .......
बहुत बढिया अभिव्यक्ति
ReplyDeletethank u....par apka ye link open nhi ho raha h....
ReplyDeleteकुछ पल अंधेरों में मुझे जीने दो .... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..................
ReplyDeleteवाह !!! बहुत गहरे अहसासों से भरी सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
प्रभावशाली प्रस्तुति .........
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना ....
ReplyDeleteखोने का डर ख़त्म हो जाये तो समझो जीवन को पा लिया
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन ...
ReplyDeleteडरती तो मैं भी थी कभी इन सायों से,
ReplyDeleteजब मेरे हमसफ़र बनकर चलती,
तुम्हारी परछाई भी सच्ची लगती थी.......!
Simple words with deep meaning...happy to read your poems..nice one.:)
कभी कभी अंधेरे में सच साफ दिखाी देता है ।
ReplyDeleteक्योकि तुम अब साथ नहीं हो ...
ReplyDelete[ ऐसा लगता है ..अभी भी बचा हुआ है कही कुछ ]