हे कृष्ण.....
नही बनना चाहती थी मैं,
कोई मिशाल.......
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी.......
हे कृष्ण.....
नही चाहती थी मैं....
असाधारण सी ख्याति,
मैं तो सिर्फ साधारण सा जीवन,
तुम्हारे साथ जीना चाहती थी......
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी.......
हे कृष्ण.....
नही चाहती थी....
किसी मंदिर की मूरत बनना,
मैं तो सिर्फ...
तुम्हारे दिल में रहना चाहती थी....
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी......
हे कृष्ण.....
नही ही चाहती थी मैं.…कि
हर घर में पूजी जाऊं,
मैं तो सिर्फ....
तुम्हे पूजना चाहती थी....
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी......
नही बनना चाहती थी मैं,
कोई मिशाल.......
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी.......
हे कृष्ण.....
नही चाहती थी मैं....
असाधारण सी ख्याति,
मैं तो सिर्फ साधारण सा जीवन,
तुम्हारे साथ जीना चाहती थी......
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी.......
हे कृष्ण.....
नही चाहती थी....
किसी मंदिर की मूरत बनना,
मैं तो सिर्फ...
तुम्हारे दिल में रहना चाहती थी....
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी......
हे कृष्ण.....
नही ही चाहती थी मैं.…कि
हर घर में पूजी जाऊं,
मैं तो सिर्फ....
तुम्हे पूजना चाहती थी....
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी......
bahut sundar
ReplyDeleteहे कृष्ण.....
ReplyDeleteनही ही चाहती थी मैं.…कि
हर घर में पूजी जाऊं,
मैं तो सिर्फ....
तुम्हे पूजना चाहती थी....
मैं तो सिर्फ तुमसे प्रेम करती थी.
प्रभावशाली प्रस्तुति ...
बहुत सुन्दर.. कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteaapne अनन्य प्रेम ,विशुध्ह प्रेम का का सुंदर चित्रण किया हैं |
ReplyDeleteअद्भुत प्रेम
ReplyDeleteसच्चा प्रेम कुछ नहीं चाहता सिवाय निकटता के
ReplyDeleteसुन्दर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बुधवार- 28/08/2013 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः7 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
हर शब्द कृष्णमय...जय श्री राधे कृष्ण
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहे कृष्ण.....
ReplyDeleteनही ही चाहती थी मैं.…कि
हर घर में पूजी जाऊं,
मैं तो सिर्फ....
तुम्हे पूजना चाहती थी....
आदरणीया सुषमा जी बहुत सुन्दर भाव ..भगवान् के भक्त भी तो पूजे जाने लगते ही हैं ..
आप सभी मित्र मण्डली को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें ...जय श्री कृष्णा
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर सहज भावों की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए साधुवाद
Vah kyaa baata hai?
ReplyDeleteVinnie,
सुन्दर रचना.....सुन्दर भाव..............
ReplyDeleteprem ke sath puja ka maan bhi sahaj mil jaata hai !
ReplyDeletesundar rachana , aabhar ke sath !
बहुत सुन्दर .जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ
ReplyDeletelatest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।
आपको कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteकृष्णा जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ....
:-)
सुन्दर ....! वाकई कितना अखरता होगा राधा को कृष्ण को बांटना ....
ReplyDeleteजी कृष्ण के प्रेम में खो गया ... फिर उसकी सुध वो ही लेते हैं ...
ReplyDeletewaah anokha samarpan prem ka ...
ReplyDeleteसमर्पण का सच यही है !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ।
ReplyDeletebahut sundar likha hai apne .....prem me aisi urja hoti hai ya to nam kr deti hai ya badnam kr deti hai .....prem hone ke uprant to ye sb hota hi hai chahe chahen ya na chaahen ....prem eeshwar ki nakatata hi deti hai .
ReplyDeleteक्या बात वाह!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletenice one ,mere bhi blog me padhare
ReplyDeleteBehatarin Kavita Sushmaji...Khudkismati se main aapke blog par aa pahuncha..sari kavitayen aur gazals kamal ke hain. Many congratulations for fabulous work!!!
ReplyDelete