एक बार फिर इन्द्रधनुष के रंगों को लिया है मैंने,
ख्यालो को ब्रश बना लिया है मैंने
जिन्दगी के कैनवास पर,
तुम्हारी तस्वीर उतरने की कोशिश की है मैंने.....
खाली पड़े कैनवास पर,
कुछ यूँ आड़ी-तिरछी लकीरे खींच दी मैंने....
जिन्दगी की ठोकरों से फिर से,
सम्हलने की कला सीख ली हैं मैंने......
इस बेरंग जिन्दगी में तुम्हारे अक्स के साथ,
कुछ रंग भरने की कोशिश की है मैंने........
एक बार फिर........
जिन्दगी के कैनवास पर,
तुम्हारी तस्वीर उतरने की कोशिश की है मैंने..........!!!
कुछ रंग भरने की कोशिश की है मैंने........
ReplyDeleteएक बार फिर........
सुंदर प्रस्तुति
ठोकरों से संभलने वाले मंजिल तक जरुर पहुँचते हैं ....
ReplyDeleteलाज़वाब रचना ..... शुभकामनायें
sundar kavita
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteजिंदगी की खूबसूरत अभिव्यक्ति
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ReplyDeleteउम्र लम्बी सही, पर ज़िंदगी तो छोटी थी,
जो तेरे साथ कटी, बस वो ही तो जी है मैंने.....बहुत सुन्दर सुषमा जी, नारी सुलभ भावों को अत्यंत सुघड़ता के साथ आप कविता के धागे में पिरोती हैं............बहुत सुन्दर..........
बहुत बढ़िया सुंदर अभिव्यक्ति ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : फूल बिछा न सको
अच्छा लिखा है ..
ReplyDeleteसच्चे एहसासों ने सुंदर तस्वीर गढ़ दी हैं ,सुषमा जी !
ReplyDeleteनई पोस्ट-“जिम्मेदारियाँ..................... हैं ! तेरी मेहरबानियाँ....."
कुछ रंग भरने की कोशिश
ReplyDeleteएक बार फिर...
- बहुत अच्छा!
आशा और विश्वास से भरे शब्द !
ReplyDeleteप्रेम के रंग उतारना ही काफी है ... चाहे तिरछी रेखाएं ही बनें ... प्रेम तो ज़िंदा रहेगा ....
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर |
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत भावयुक्त रचना!!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteमंगलवार 10/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
सुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
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